________________
0 लगता है आज का मनुष्य शान्ति की राह से भटक गया हैं। इसी भटकाव मे कभी वह विज्ञान की शरण लेता है, कभी वह सब कुछ समाप्त कर केवल शून्य वाद को अपनाने दौडता है। फिर भी वह शान्ति से दूर ही होता चला जा रहा है। उसकी त्रासद परिस्थितियां समाप्त होने मे ही नही आ रही हैं। दल बन्दियो मे फसा धर्म भी आज उसे त्राण देने में समर्थ नहीं है। आज मानवता भयकर रूप से पीडित है।
पीडित मानवता को सुख और शान्ति प्रदान करने के लिए आज धर्म और विज्ञान दोनो की ही आवश्यकता है। जहाँ विज्ञान मानव-समुदाय के लिए प्रकृति से भौतिक सुख-समृद्धि के साधन जुटाता है, वहाँ धर्म आध्यात्मिक सुख एव परिपूर्णता प्रदान करता है। इसलिए दोनो का समन्वय आवश्यक है। विज्ञान और धर्म विरोधी नही हैं । विज्ञान भी मनुष्य के कल्याण के लिए कार्य करता है । दल-बन्दियो के दलदल से निकालकर धर्म की विशुद्ध आत्मा को समझना होगा। विशुद्ध धर्म और विज्ञान का समन्वयात्मक रूप मानव जीवन के लिए कल्याणकारी होगा, मनुष्य को शान्ति देने वाला होगा।
चिन्तन-कण ] ७७