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0 वर्तमान वैज्ञानिक प्रगति के युग मे मनुष्य पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से मुक्त होकर चन्द्रमा तक हो आया है और मगल ग्रह तक जाने की योजना-पूति के कार्यक्रम में लगा हुआ है।
किन्तु खेद है कि वह अपनी जडता के गुरुत्वाकर्षण से वधकर पडौस के आदमी तक नहीं पहुंच पाता । नही देख पाता कि वह किन परिस्थितियो में अपना जीवन यापन कर रहा है । उसको भी तो जीने का हक है। वह भी विकास का इच्छक है ।
आज का मानव इतना बुद्धिमान है, कि वह विज्ञान के तीव्र गति वाले घोड़े पर आरुढ होकर मानवेतर प्रकृति को नियन्त्रित करने मे जी-जान से जुटा है। कुछ अणो मे उसको नियन्त्रित कर भी लिया है।
किन्तु कहना पडता है कि बुद्धिमान होते हुए भी वह मूढ है, अज्ञ है। क्योकि वह स्वय की प्रकृति को नियन्त्रित करने में असफल रह जाता है । वह आत्म नियन्त्रण नहीं कर पाता। दूसरो के जीवन का लेखा-जोखा लगा लेने से हमे कुछ भी मिलने वाला नही । हमे अपने जीवन का सही लेखा-जोखा करना होगा जडता के गुरुत्वाकर्षण से तनिक परे हट कर । तभी सम्बोधि प्राप्त की जा सकती है।
७६ / चिन्तन-कण