________________
- आवश्यकता न होने पर किसी चीज का त्याग करना अथवा अह की सतुष्टि के लिए त्याग करना सच्चा त्याग नही है। मनुष्य को सग्रह का अहकार तो होता ही है, कभी कभी त्याग का भी अहकार हो जाता है । अहकार सर्वथा सर्वकाल मे वर्जित है। केवल त्याग की भावना से किया गया त्याग ही सच्चा त्याग है। सच्चा त्याग केवल आत्म-सुख तक ही सीमित नही रहता, अपितु वह दूसरो के लिए भी सुख सम्प्राप्ति का कारण बनता है। त्याग मानव समुदाय के लिए सदा से ही सुख एव आनन्द का कारण रहा है। इसलिए अहशून्य त्याग की सीमा मे आइए । यह मह शून्य त्याग ही विश्व शान्ति का सस्थापक हो सकता है। त्याग के अभाव मे मनुष्य की वृत्तियाँ एकागी, अपने तक ही सीमित बन जाती हैं। वह क्षुद्रता की सीमा रेखाओ मे बध कर रह जाता है। त्याग विराट के उद्भव का कारण बनता है, जो मानव-जीवन का परम लक्ष्य है । त्याग-आत्मशान्ति एव विश्वशान्ति के लिए अनिवार्य आवश्यकता है।
चिन्तन-कण | ८१