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0 समस्या बस एक ही है, और वह हमारे जीवन के प्रत्येक अग मे व्याप्त है । वह समस्या है अपनी पहचान की। मनुष्य इधर उधर के ससार को तो जानने का प्रयत्न करता है, और उसके प्रति जिज्ञासा भी रखता है, परन्तु इस पहचान के प्रयत्न मे वह स्वय को विस्मृत कर देता है । वह भूल जाता है कि वह कौन है और उसे क्या होना चाहिए ? इसप्रकार अपने से ही पहचान करने मे परहेज क्यो ? यह एक विचारणीय बात है । हम भूल रहे हैं कि इस समय हम कहां है और किस मजिल तक पहुंचना चाहते है ? जब तक ये दो विन्दु स्पष्ट न हो, तब तक प्रगति की वास्तविक दिशा का बोध कराने वाली सीधी रेखा, सीधी राह नहीं कही जा सकती। इसलिए स्वय के प्रति आस्थावान रह कर, स्वय को जानते-पहचानते, जीवन का लक्ष्य निर्धारित करना है। जब जीवन की दिशा स्पष्ट हो जाएगी तो समस्याएँ स्वयमेव ही सुलझती चली जाएंगी। उनका समाधान स्वय से ही मिलता चला जाएगा। अत स्वय को जानिए, अपनी मजिल अथवा लक्ष्य को पहचाने का प्रयत्न कीजिए आत्मज्ञान के प्रकाश मे। D
चिन्तन-कण | ७५