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कहने योग्य ही कहो, अन्यथा मौन रहो। अधिकाश झगडे और वितण्डावाद अधिक बोलने की आदत के ही प्रतिफल होते हैं। जितना कुछ जानते हो वह सब कुछ उगल देने के लिए लालायित मत रहिए। अपने बोलने की आदत पर नियन्त्रण रखना सीखिए। आप जानते हैं भगवान अनन्त ज्ञानी थे । वे लोकालोक को हस्तामलकवत् जानते थे। पर उन्होने कहने योग्य ही कहा, अधिक नहीं। "जेय तस्सपन्नवणा जोगे से भासह तित्त्थयरा।"
चिन्तन-कण | ४१