Book Title: Chintan Kan
Author(s): Amarmuni, Umeshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 64
________________ ] अत्यधिक मारामतलबी मनुष्य को स्थितिवादी बना डालती है। क्योकि भविष्य के लिए उसकी कर्तृत्व शक्ति हीन से हीनतर होती जाती है । पुरुषार्थ प्रसुप्ति मे पहुंचता चला जाता है । इसीकारण उसकी निगाहें पीछे की ओर देखने की आदी हो जाती हैं। सुधार हमेशा सशक्त बोधपूर्ण कर्तृत्व की अपेक्षा रखता है। यहाँ आराम हराम होता है । सुधारवादी सदा आगे की ओर ही देखता है । वह भविष्य मे से ही सत्यम्-शिवम्-सुन्दरम् का निर्माण करता है। नए-नए मार्गों का अन्वेषण करता है। नईनई उपलब्धियो का प्राप्तकर्ता होता है। वह हर दिन नूतन, नित्य नूतन से परिचित रहता है, जबकि स्थितिवादी नूतन से सर्वथा अपरिचित हो अतीत के ही स्वर्णिम व्यामोह मे उलझा रहता है। वह सत्य के नए द्वार उद्घाटित करने मे सर्वथा असमर्थ रहता है । जव सत्यान्वेषण की दिशा मे प्रयत्न ही नही होगा तो नवीन उपलब्धियां कैसे और कहाँ से प्राप्त हो सकेंगी, यह एक विचारणीय प्रश्न है। ५६ चिन्तन-कम

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