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O मनुष्य सुन्दरता का उपासक रहा है। उसने सौन्दर्य का अपना उपास्य माना है, चाहे वह किसी भी प्रकार का क्यो न हो। मनुष्य की इस सौन्दर्य पिपासा ने अनेक सुन्दर फुलवारियो का मृजन किया, अनेक सौन्दर्यपूर्ण ताल-सरोवरो का निर्माण किया। इस प्रकार मानव ने प्राकृतिक सौन्दर्य-सुपमा को अपने अत्यन्त निकट लाने का प्रयास किया। आज के इस वैज्ञानिक युग ने तो मनुष्य की इम मौन्दर्य लिप्सा की तृप्ति के लिए अनेक प्रकार की प्रसाधन सामिग्री का निर्माण किया। मनुष्य ने अपने असुन्दर शरीर को इन अत्याधुनिक प्रसाधनो से सजाने-सवारने का प्रयत्न किया। फलत इसकी खून-पसीने की गाढी कमाई इन प्रसाधनो की भेट होती चली गई । खेद है कि मनुप्य ने ऊपरी सौन्दर्य की ओर तो इतना अधिक ध्यान दिया, किन्तु अपने गुणात्मक सौन्दर्य को सबंथा ही भूल गया । यदि मनुष्य अपने अन्दर मानवता मूलक मुन्दर गुणों का मग्रह करे तो तन की अमुन्दरता अपने आप मिट जाएगी। मन के मौन्दर्य के सामने तन का असौन्दर्य सदा-सदा के लिए छप जाता है। उसका कोई मूल्य-महत्त्व नहीं रहता
फिर।
७० | चिन्तन-कण