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- मनुष्य प्रारम्भ से ही सग्रह वृत्ति का प्राणी रहा है । यह सग्रह की भावना ही भविष्य मे चलकर अनेकानेक असमानताओ को जन्म दे डालती है। फलत मनुष्य सघर्ष मे उतर पडता है। सघर्ष मे उतरते ही अनेक विषम स्थितिया उसे चारो ओर से घेर लेती हैं। अभाव-अभियोगो का एक तांता सा लग जाता है। इसलिए विचारक लोग मनुष्य की इस सग्रह वृत्ति को तोडने का प्रयत्न करते ही चले आ रहे हैं, और कर रहे है । अभी तक यह नियत्रण मे नही आ पाई है। परिणाम स्वरूप वर्ग संघर्ष नए-नए रूपो मे जन्म ले रहे हैं। मानवता मूलक सिद्धान्तो से मनुष्य दूर हटता चला जा रहा है। परस्पर मे अविश्वास की भावना पैदा होती जा रही है। जो कि सग्रह वृत्ति की प्रथम सन्तान के रूप मे है । यह पारस्परिक अविश्वास अनेक युद्धो का रूप धारण कर चुका है। और जब भी पारस्परिक विक्षोभ, द्वन्द्व, संघर्ष बढते हैं, इन का मूल पोषक तत्त्व यह अविश्वास ही होता है । इसलिए मनुष्य को अपनी सग्रह वृत्ति पर नियन्त्रण करना है, जो अनेक सघर्षों की जन्मदात्री है। जब तक मनुष्य की यह घातक वृत्ति नहीं टूटेगी, तब तक शान्ति का पथ धूमिल ही बना रहेगा । उस पर अविश्वास का कोहरा छाया ही रहेगा।
चिन्तन-कण | ६९