Book Title: Chintan Kan
Author(s): Amarmuni, Umeshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 74
________________ 0 विसर्जन मे ही नव सृजन के तत्व निहित है । नव सृजन के लिए विसर्जन आवश्यक है । हर नव निर्माण पूर्व का विसर्जन चाहता है । जरा चिन्तन मे गहरे उतरिए, और विचार कीजिए, एक बीज जव तक अपना स्वय का अस्तित्व बनाए हुए है तब तक वृक्ष के निर्माण की कल्पना नहीं की जा सकती । वृक्ष कव अस्तित्व मे आता है ? जब बीज स्वय का विसर्जन कर देता है पूर्णतया । बीज का विसर्जन हुया कि वृक्ष का सृजन प्रारम्भ हो जाता हैं। शन शन वह अपना विराट रूप लेकर हमारे सामने आ जाता है । इस प्रकार विसर्जन सृजन के द्वार खोल देता है। विसर्जन से घबराइए नही । यह सृजन की पूर्व प्रक्रिया मात्र ही तो है, इसका स्वागत कीजिए । निर्माण के इस प्रारूप को नकारने में काम नहीं चलेगा। स्वके अस्तित्व को चिरस्थायी रखने के लिए एक बार तो अस्तित्व को विसर्जित करना ही होगा । वीज को वृक्ष बनने के लिए प्रतीक्षा करनी ही होगी । हो सकता है यह प्रतीक्षा कुछ लम्बी भी हो, परन्तु धीरज को छोडिए नहीं। विसर्जन के बाद मृजन यवश्यभावी है । दोनो एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । दोनो एक ही छड़ी के दो छोर हैं। ६६ / चिन्तन-कण

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