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" यह जन मानस की एक दुर्बल मनोवृत्ति है कि वह वर्तमान से सदा असन्तुष्ट ही रहता है। भूतकाल को अच्छा समझने की उसकी स्वाभाविक प्रवृत्ति होती है। इसी कारण वर्तमान का लाभ उसे ठीक तरह से नहीं मिल पाता, और उसके दोष वर्तमान के सिर पर लद जाते हैं।
यहां मनुष्य यह भूल जाता है कि अतीत उसके हाथ से निकल चुका है, भविष्य उससे अभी दूर है, वर्तमान उसके अपने हाथ मे हैं । जैसा उसको बनाना चाहे वह बना सकता है। निर्माण या ध्वस दोनो मानव की अपनी ही मनोवृत्ति पर निर्भर हैं । वर्तमान का ही अधिक महत्व है जीवन मे। अतीत प्रेरणा स्रोत बन सकता हैं। भविष्य स्वर्णिम आदर्श एव कल्पनाओ का ताना-बाना हो सकता है। किन्तु वर्तमान एक ऐसा यथार्थ है, जो भोगना होता है। जहाँ खट्टे-मीठे अनुभवो के फल लगते हैं। जो जीवन की प्रगति के लिए अतीव महत्वपूर्ण है। वर्तमान मानव जीवन की एक महत्वपूर्ण क्रीडा स्थली है। जहां बनाव और बिगाड दोनो ही हैं।
चिन्तन-कण | ६५