Book Title: Chintan Kan
Author(s): Amarmuni, Umeshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 71
________________ - मनुष्य के पास मस्तिष्क है, विचार है, बुद्धि है और है अपना स्वतन्त्र चिन्तन । पीछे से चली आ रही हर परम्परा को वह आँखे बन्द करके स्वीकारता ही चले, यह उसके स्वतन्त्र चिन्तन एव बुद्धि का अपमान है। हमारे लिए आवश्यक नही कि हम पुरानी पीढी का चश्मा लगाएँ ही लगाएँ । हम अपनी दृष्टि से देखें कि क्या सही है और क्या गलत है ? साथ ही यह भी ध्यान रखिए कि बिना किसी नई सिद्धान्तस्थापना की दृष्टि के कोरा अस्वीकार पलायन है। पलायनवादी के पास कुछ कर पाने या कुछ नया देने की क्षमता कतई नही होती। इसलिए मनुष्य अपनी बुद्धि एव अपने स्वतन्त्र चिन्तन का विकास करे नये सिद्धान्त स्थापना की दृष्टि को ध्यान में रख कर। नये के व्यामोह मे सब कुछ नकारता ही न चला जाए। 0 चिन्तन-कण [६३

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