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0 कुछ बलिदान ऐसे भी होते हैं - जिन्हें जमाने की स्थूल निगाहे नही देख पाती, परन्तु उनके परिणाम से हर कोई परिचित रहता है । दीवार हमेशा नीव के पत्थरो पर ही खडी की जाती है, ऐसा ससार का नियम है। लेकिन नीव के उन पत्थरो को कोई देख नहीं पाता । दीवार खडी हो जाने के पश्चात् दीवार हमे दीखती है, पर नीव के बलिदानी ककड-पत्थरो को हम कव देख या जान पाते हैं ? और सच तो यह है कि वलिदानी ककड-पत्थरो की यह कामना भी नहीं होती। जहां अपने आप को प्रदर्शित करने का भाव आया कि बलिदान का रग ‘फीका पड़ना प्रारम्भ हो जाता है। वलिदान मूक कर्तव्य पालन माँगता है --प्रसिद्धि से दूर, अति दूर रह कर । .
६४ / चिन्तन-कण