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। मनुष्य एक भावनाशील प्राणी है । भावात्मक रूप से प्रत्येक मानव एक दूसरे से सम्बद्ध है । सेवा मानव को मानव के अति निकट ले आती है । सेवा मनुष्य को मनुष्य के प्रति कर्तव्य का सहज बोध कराती है । सेवा का अर्थ सहज अनुग्रह या दान नही है, अपितु स्वेच्छा पूर्वक लोगो के दुख दर्द को अनुभव करना है। वह भी केवल नीतिवश नही, बल्कि अतीव आवश्यक कर्तव्य समझ कर एव मानव परिवार के हर व्यक्ति के प्रति सहज कर्तव्य बुद्धि से प्रेरित हो कर । यही मानव मात्र को एक सूत्र मे आवद्ध करने वाला भावात्मक रूप है।
चिन्तन-कण | ५७.