________________
। मैत्री और स्वार्थ मे भला कहाँ मेल ? दोनो मे छत्तीस के अक की सी विपरीतता है । जहाँ स्वार्थ हैं वहाँ मित्रता नही,
और जहाँ मित्रता है वहाँ स्वार्थ नही । स्वार्थ के आते ही मित्रता, मित्रता नहीं रहती, कुछ और हो जाती है-शत्रुता । जो जीवन के लिए वरदान नही, अभिशाप बन जाती है।
४६ | चिन्तन-कण