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- इस मनुष्य के लिए, अपने को अक्ल का पुतला सिद्ध करना सहज है, किन्तु अपने को मनुष्य सिद्ध करना कठिन है। आज का मनुष्य मनुष्य नहीं है। सत्य, अहिंसा, शिष्टता, सहिष्णुता, स्वाभिमान रक्षा तथा आत्मोपम्य-दृष्टि मानवता के आधार स्तम्भ हैं। आज का तथाकथित सभ्य मानव इन्ही सद्गुणो की अवहेलना कर मानव से दानव वन रहा है। आज व्यक्ति समष्टि के रूप मे परिणत नहीं होना चाहता, अपितु समष्टि को अपने अधीनस्थ रखना चाहता है । जो उस की वहुत वडी भूल है । इस स्थिति मे उसके विकास के सभी द्वार अवरुद्ध हो जाते हैं । फलत वद्ध मानसिकता का शिकार होकर मनुष्य अपने आप मे ही सिमट-सिकुड कर रह जाता है।
४८/ चिन्तन-कण