________________
। मनुष्य मनुष्य मे जिस प्रकार वेष-भूषा' का, आकृतिप्रकृति का, आहार-विहार का अन्तर होता है, उसी प्रकार मन का भी अन्तर होता है। प्रत्येक मानव की सोचने-समझने की शक्ति अलग-अलग है । एक व्यक्ति घोर पाप करता है, दूसरा केवल कहता है कि पाप करूंगा, तीसरा केवल मन ही मन पाप करने की सोचता है और चौथा पहले पापकरने की सोच कर फिर उस सकल्प को तज देता है । एक अन्य व्यक्ति पाप के बारे मे कभी सोचता तक भी नहीं। पाप की ओर प्रवृत्त होने का उसे कभी सकल्प ही नहीं आता। इस प्रकार मनुष्यो का यह श्रेणी विभाग किया जा सकता है। इसी मनः स्थिति के आधार पर मानव समुदाय को विभक्त किया जा सकता है। मानव की मानस-धारा ही उसकी विभाजक रेखा है आन्तरिक दृष्टि से ।
५० | चिन्तन-कण