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जन्म और मृत्यु, दोनो ही जीवन के शाश्वत तत्व हैं। दोनो ही परिवर्तन की एक प्रक्रिया मात्र हैं। दोनो एक ही छडी के दो छोर । वचपन मरता है मनुष्य नोजवान होता है । स्वय तो नही मर जाता वह । बस, बचपन एक परिवर्तन प्रक्रिया से गुजरा कि वह नौजवान नजर आया । इसी प्रकार नोजवानी मरती है बुढापा आता है, और बुढापा जब परिवर्तन प्रक्रिया से गुजरता है अर्थात् बुढापा मरता है तो फिर बचपन आ जाता है । इस प्रकार यह परिवर्तन प्रक्रिया चलती ही रहती है । इसलिए बुढापे के मरने को अपना मरण मानना, समझना अज्ञान है । ये तो कुछ प्रक्रिया विशेष हैं जिनके बीच होकर यह भौतिक शरीर गुजरता हुआ अनेक अनुभूतियाँ करता है आत्मा के सयोग से । इन प्रक्रियाओ का आत्मा पर मूलत कोई असर नही होता । आत्मा तो एक अमर तत्व है ।
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चिन्तन-कण | ३६