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0 अशुभ से शुभ की शक्ति कही अधिक है। धूमिलता से से प्रकाश कही तीव्रगति से आता है । एक शीशे को ले लीजिये। इसको धूमिल होने के समय की काफी अपेक्षा है। एक-एक करके धूल-कण उस पर जमते चले जाते हैं, तब जाकर वह काफी देर मे कही धूमिल हो पाएगा। परन्तु उसको स्वच्छ एव उज्ज्वल करने मे अधिक समय नही लगेगा। बस जरा दवाव से उस पर हाथ फिराइए कि उसकी स्वच्छता उभर आती है। इसलिये शुभ्रता अधिक शक्तिशाली है धूमिलता की अपेक्षा । मनुष्य वस्त्र का उपयोग करता है । शनै शन कुछ दिनो अथवा सप्ताहो मे जाकर वह मलिन हो पाता है, परन्तु उसे स्वच्छ करने में कितना समय लगता है ? वस आधा घटा लगा, धोया और साफ। आत्मा के सम्बन्ध मे भी कुछ ऐसा ही है । आत्मा भी ऐसे ही शुद्ध एव पवित्र होती है। इसलिए अशुभ से शुभ की शक्ति बडी है। मलिनता की अपेक्षा शुभ्रता शीघ्रता से आती है।
३८ | चिन्तन-कण