Book Title: Chintan Kan
Author(s): Amarmuni, Umeshmuni
Publisher: Sanmati Gyan Pith Agra

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Page 25
________________ हथेली पर सरसो उगाने के क्षणिक प्रयास मे शक्तिक्षरण मत करो, अपितु सतत परिश्रमशील बनो । निरन्तर श्रम के आराधक बनो तथा प्रगतिशील दृष्टिकोण रखो । नए परिवर्तनो से घबराओ मत । बदलाव आने दो । गर्मी के पश्चात् वर्षा का आना आवश्यक ही नही, अनिवार्य है । यह प्रकृत्ति का नियम है । परिश्रम हमेशा परिवर्तन को जन्म देता है । श्रम विमुख कुण्ठा नए आयाम खोलने मे सदा से असमर्थ रही है । उर्वरा भूमि में डाला गया वीज यदि परिश्रम के जल से सिंचित न हो, तो क्या कुछ उपलब्धियाँ दे सकता है वह ? क्या फसल मिल सकती है ? क्या खेती लहलहा सकती है ? क्या फूल खिल सकते हैं ? उत्तर होगा नही । गति प्रगति के लिए बीज को टूटना ही होगा । अपने आप मे परिवर्तन लाना ही होगा। तभी वह प्रस्फुटित एव अकुरित हो सकेगा । उसका यह विस्फोटक रूप ही उसके जीवित होने का परिचायक होगा। इसलिए परिवर्तनो से घबराओ मत । कुण्ठाओ को जीवन मे स्थान मत दो। नए आयाम खुलने दो । नए मोड आने दो । यह परिवर्तन ही प्रगति का सूचकांक होगा । O चिन्तन-कण | १७

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