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- साधक जब साधना करने चलता है तो उस के लिये
आत्म विश्वास और आत्म विस्मृति दोनो ही अनिवार्य हैं । आत्म -विश्वास की अनिवार्यता इसलिये है कि मनुष्य की शक्ति और
उसके लिए उपलब्ध साधन सीमित हैं । अत वह कही हीन भावना. का शिकार न हो जाए। उसे अपनी आत्म-शक्ति का भान रहे । आत्म-विस्मृति इसलिए आवश्यक है कि वह अपने को भूल कर अपनी इच्छा वृत्तियो को मिटाकर अनासक्ति और आत्म समर्पण का पथ ग्रहण कर सके । जव तक साधक अपनी साधना के प्रति सर्वतोभावेन समर्पण की पूर्ण तयारी नही रखेगा तब तक वह साधना-मार्ग मे प्रगति नही कर सकेगा। स्वय को भुला देना और अपनी इच्छा वृत्तियो को समाप्त कर देना ही समर्पण भावना को जन्म देता है । यदि स्वय की इच्छा की क्षीण सी भी रेखा बनी रही तो समर्पण अधूरा ही रह जाएगा और अधूरापन कभी भी साधना को सिद्धि मे परिवर्तित नही कर सकता।
.३० | चिन्तन-कण