________________
- खण्डहर टूटेंगे तभी तो नए मकान बन सकेंगे। नीव खुदेगी तभी तो ऊंचे प्रासाद का अस्तित्व सामने आ सकेगा। नदी उमडेगी तभी तो भूमि उर्वरा, उपजाऊ होगी। नव निर्माण अपने लिए एक पूर्व भूमिका मागता है। बिना पूर्व भूमिका के उसका अस्तित्व असम्भव है। पानी बरसेगा तो बहेगा ही। नदी उमडेगी तो तटवर्ती पेड-पौधे, चाहे वे कितने ही विशाल क्यो न हो, उखडेंगे ही । कूल-कगार टूटने जैसी स्थिति मे आयेंगे ही। यह तो युग सत्य है । जिसको नकारा नही जा सकता । यह तो नव निर्माण की मांग है । इससे घबराना क्या? पुरातन जर्जरित हो, खण्डहर बने वृन्दावनो के मीठे व्यामोह मे क्यो उलझे हो ? स्थान-स्थान पर नए वृन्दावनो की सृष्टि करो। नए आनन्द-वनो का निर्माण करो । धर्म, कला, संस्कृति, साहित्य और इतिहास इन्हे क्यो बांधकर रखते हो? इन्हे भी नवस्फूर्त चिन्तन एव निष्ठापूर्ण श्रम द्वारा नए मोड लेने दो।
चिन्तन-कण ! २१