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0 जब तक तुम आकाश की ओर ही देखते-निहारते रहोगे, ग्रह-नक्षत्रो की ओर ही झाकते रहोगे, तब तक तुम्हारी ओर किसी का भी ध्यान आकर्षित नही हो सकेगा। तुम्हे कोई भी नही देख पाएगा। लेकिन तुम्हारा समग्र ध्यान जब धरती की
ओर जाएगा तभी सबका ध्यान तुम्हारी ओर आएगा। तुम्हारा परिश्रम-पुरुपार्थ तुम्हें दुनिया की दृष्टि का केन्द्र विन्दु बना देगा। इसलिए भाग्य के सहारे जीना छोडो। वर्षा मे यदि छत टपक रही है तो टपके के नीचे से चारपाई सरका कर ही सन्तोष मत कर बैठो। पुरुपार्थ को जागृत करो। भरे हुए पानी को उलीच कर बाहर करो और छत के छेदो को बन्द करो। परिश्रमशील वनो। फिर आनन्द और सुख के द्वार तुम्हारे वास्ते सदा-सदा के लिए उद्घाटित है । जहाँ तुम निर्वाध प्रवेश पा सकते हो। 0
१८ | चिन्तन-कण