Book Title: Charcha Sagar
Author(s): Champalal Pandit
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 19
________________ ५२७ चर्चा संक्षणा बर्श पृष्ठ संख्याबळ संख्या पृष्ठ संस्था, भाषा मंगलमें उस हाथीके सौ मुंह बतलाए हैं सो गया २३९ तीर्थकर भगवान गृहस्थाश्रममें जन्म दिनसे लेकर दीक्षाठीक है समयतक नो वस्त्राभरण पहनते हैं सो देवकि वहसि बाये भाषामंगलोंको काष्ठ संघका किस प्रमाणसे कहते हो ५७ हुये पहनते हैं सो वे वस्त्राभरण पहनते आते हैं और उन्हें सिंहासन पर कमलका वर्णन और जगह मो आया है ५१८] कौन लाता है २३३ एक दिनके दोक्षित मुनिको सौ वर्ष की दीक्षित वर्जिका २४. इस समयके जिनाश्रमी भोजनके समय वस्त्रोंको उतारनमस्कार करे या नहीं कर नग्न होकर भोजन पाम करते हैं सो इसका क्या २३४ गृहस्थ वा मिथ्यादृष्टी वा स्पृश्य सूत्र वा अस्पृश्य शूद्र अभिप्राय है। मुनिराजको वंदना करते हैं सो मुनिराज सबको एकसी २४१ पांचों शानों से किसी एक जीवके एक ही समय में अधिकधर्मवृद्धि देते हैं अथवा और भी कुछ कहते हैं। ५१९ से अधिक कितने ज्ञान हो सकते हैं सब हो सकते हैं या २३५ श्रावक पुरुषोंको मुनियोंसे वा अजिंकाबोंसे नमोस्तु नहीं। किस प्रकार करना चाहिये २४२ चतुणिकाय देवोंके मैथुन किस प्रकार होता है किसके धावकोंको इच्छाकार बतलाया सो चौपे काल में किसने समान होता है। सबके समान होता है। या अलग किसकी किया है। ५२१ अलग रूपसे । परस्पर जो जुहार किया जाता है उसकी कथा क्या है ५२१ | र यदि किसी भुनिके घाव या फोड़ा हो जाय तो भगत २३६ श्वेतांबरी साधु मन, वचन, काय, कृत, कारित, अनुमो श्रावकजन उसको अच्छा करनेके लिये किसो शस्त्रके दनासे जीवन पर्यंत छहों कायको हिसाके त्यागी होते हैं। द्वारा उसकी चीरफाड कर सकते हैं या नहीं, चीरफाड़ यदि वे मुंहपर पट्टो न लगावें तो पाठ करते समय का करनेसे उनको अधिक वेदना होगी सो करनी चाहिये बोलते समय बायु कायके जीव मर जार्य तो फिर उनके या नहीं ५२८ अहिंसा महाव्रत पल नहीं सकता इसलिये क्या मुंहपट्टी यदि उपाय करते हुये उसको वेदनासे मुनिका भरण हो लगाना दयाके लिये समझना चाहिये ५२२ । जाय तो पापका बंध होगा या नहीं २३७ श्वेतांबरी महाव्रतो साधुओंको अठारह कुलोंका आहार २४४ चावकिमतवाला आरमाको कोई अलग पदार्थ नहीं मानता लेना निर्दोष बताया है यदि किसी दातारका कुल शूद्र और सांख्यमतवाला उसे सदा मुक्त मानता है इसलिये हो तो क्या दोष है? ये दोनों ही मोक्षके उपायको व्यर्थ मानते हैं सो क्या २३८ इस चतुर्थकालमें जो धर्मका विच्छेद रहा था। मुनि ठीक है अजिंका, श्रावक-श्राविका नहीं रहे थे सो कौनसे समयमें २४५ तत्वोंका श्रवान करना सम्यकदर्शन बतलाया तथा किन तीर्थंकरोंके समय में और कितने काल तक विच्छेद उसकी उत्पत्ति निसर्ग और अधिगमसे बतलाई सो क्या रहा था ५२४। उसको उत्पत्तिके ये हो दो कारण हैं या और भी हैं ५२९ ३१

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