________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र , 33 जैसी है / अन्यथा जगत में एक से एक बढ़ कर ऐसे पुरुष विद्यमान है कि उनको देख कर देखनेवाले का मस्तक आनंद की मस्ती से नाच-नाच उठेगा / महल के एक कोने में पड़ी रहनेवाली तुझे इन सारी बातों का क्या और कैसे पता होगा ? तू तो अज्ञान के आनंद में तल्लीन है।" अपनी सास की ये लम्बी-चौड़ी बातें सुन कर प्रसन्नचित गुणावली ने सास से कहा, "माताजी, आप कभी ऐसा मत बोलिए। आकाश में रात के समय करोडों तारे चमकते हैं, फिर भी रात्रि की शोभा तो चंद्रमा से ही होती है। जंगल में सियार गीदड़ तो अनेक होते है, लेकिन उनकी सिंह से तुलना नहीं हो सकती। जंगल में मृग (हिरन) तो सेकडों होते हैं लेकिन कस्तूरी किसी कस्तूरीमृग की नाभि में ही विद्यमान् होती है। उसी तरह कहाँ आपके प्रिय पुत्र और मेरे पतिदेव राजा चंद्रकुमार और कहाँ अन्य पुरुष ? मैं तो आपके पुत्र के सिवाय अन्य पुरुषों को उनके नाखून की बरा-बरी का भी नहीं मानती हूँ। जिसके महल के सामने गजरत्न झूम रहे हो, उसे गधा देखना कैसे पसंद आएगा ? जिसके आँगन में कल्पवृक्ष हो, उसे रेंडी का पेड़ देखना क्या अच्छा लगेगा ? आपके प्रिय पुत्र को पति के रूप में पाकर में अपने जीवन को सार्थक मानती हूँ। मेरे तो वे ही सबकुछ हैं। मेरे लिए वे ही कामदेव है और वे ही परमात्मा है। क्या आपने कभी यह नहीं सुन कि हर मनुष्य को अपने सामने-निकट-होनेवाली वस्तु ही प्रिय लगती | अपनी बहू के ये वचन सुन कर वीरमती ने कहा, "तेरा यह कहना बिलकुल सत्य है कि मेरा पुत्र चंद्र लावण्यादि गुणों की दृष्टि से अनुपम है। मैं यह बात स्वीकार करती हूं। पति चाहे जैसा क्यों न हो, कुलीन स्त्री के लिए तो वही उसका सर्वस्व होता है, सबकुछ होता हैं। लेकिन बेटी यह 'वसुन्धरा बहुरत्ना' है। इस संसार में एक से बढ़ कर एक नररत्न पाए जाते हैं। जब तू मेरे साथ देशदेशांतर की यात्रा करेगी और घूम कर दुनिया देखेगी, तभी तुझे मेरी बात का सत्य प्रतीत होगा। जब तक तू इस आभापुरी में ही बसी हुई है और अपने पति को ही देखती रहती है, तब तक तुझे किसी बात की खबर नहीं होगी। तू वैसे ही कूपमंडक बनी रहेगी। - इसलिए देशाटन करना तेरे लिए श्रेष्ठ है। उसके बिना मुझे तेरा जीवन पशु समान ही लगता है। दूसरी बात यह है कि मुझ जैसी विविध अलौकिक विद्याओं से संपन्न सास को पाकर P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust