________________ 140 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र अंत में मुर्गे के रूप में होनेवाले चंद्र राजा ने शिवमाला से कहा, "तेरे पास आ जाने के बाद मैं अपने जीवन की सारी कहानी अथ से इति तक तुझे सुनाऊँगा। इस समय तो मैंने संक्षेप में ही बहुत महत्त्वपूर्ण बातें ही तुझसे कह दी हैं।" अब शिवमाला ने फिर एक बार अपनी कला रानी वीरमती के सामने प्रकट की। नाटक पूरा हुआ। शिवमाला बाँस पर से नीचे उतर आई। वह 'राजमाता वीरमती की जय पुकारता हुई वीरमती के पास गई और उसने वीरमती के सामने इनाम की याचना की। अपनी जयजयकार सुनकर बहुत खुश हुई वीरमती ने शिवमाला से कहा, “बोल, तुझे क्या चाहिए ?" शिवमाला ने कहा "हे राजमाता, यदि आप हम पर प्रसन्न हई हैं, तो हमें आपका बह गुणावली के पास सोने के पिंजड़े में पड़ा हुआ जो मुर्गा है, वह इनाम में दे दीजिए। हम पर इतनी दया कर के खुशी से हमें वह मुर्गा दीजिए। हमें इनाम में अन्य कोई चीज नहीं चाहिए।" शिवमाला के पिता शिवकुमार ने भी वीरमती से कहा, “हे राजमाता, इस समय मेरी पुत्री मुर्गे की गति ही सीख रही है। यह शिक्षा उत्तम जाति के मुर्गे को प्राप्त किए बिना संभव नहीं है। इसलिए कृपा करके हमें यह उत्तम जाति का मुर्गा अवश्य दे दीजिए। माताजी, आप अपन लिए दूसरा मुर्गा खरीद कर पालिए। आपकी कृपा से मुझे धन-संपत्ति की कोई कमी नहीं है / यदि कभी उसकी जरूरत पड़ेगी, तो वह धन-संपत्ति अन्य राजाओं से भी प्राप्त की जा सकत है। इसलिए आप हमें यह मुर्गा ही दे दीजिए। इतनी कृपा अवश्य कीजिए।" | शिवकुमार की प्रार्थना सुन कर वीरमती ने उससे कहा, “हे शिवकुमार, तू मुझसे ऐस तुच्छ वस्तु क्यों मांग रहा है ? तुझे तो मुझसे हाथी, घोड़े, धन-धान्य-वस्त्र-आभूषण आदि मांगन चाहिए। ऐसी कोई कीमती चीज़ इनाम में देने से मेरे यश की वृद्धि होगी। सिर्फ मुर्गा ही इना में देने से मेरी कीर्ति नहीं बढ़ेगी। अब तक मैंने किसी को इनाम के रूप में मुर्गा देते हुए न देख है, न सुना है / यह मुर्गा तो मैंने अपनी बहू के मनोरंजन के लिए पाला है। यदि यह मुर्गा मैं तु इनाम के रूप में दे दूं, तो मेरी बहू का मनखिन्न हो जाएगा। इसलिए तू इस मुर्गे को छोड़ क कोई भी वस्तु माँग ले। मैं तुझे मुँहमाँगी चीज दे दूंगी।" / इसपर शिवकुमार ने कहा, “हे माताजी, यदि आप हमें अपना मुँहमाँगा इनाम इस मु के रूप में दे देती हैं, तो आपकी थोड़ी-सी भी अपकीर्ति नहीं होगी, बल्कि आपकी कीर्ति में वृनि ही होगी और हमें भी इस बात का संतोष होगा कि राजमाता ने हमें मुँहमाँगा इनाम दिया।" P.P.Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust