Book Title: Chandraraj Charitra
Author(s): Bhupendrasuri
Publisher: Saudharm Sandesh Prakashan Trust

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Page 254
________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 249 प्रकार निंदा करना तुझे बिलकुल शोभा नहीं देता है। मेरे घर प्रतिदिन जो साध्वियाँ भोजन पानी लेने आती है, उनको मैं अपने गुरु की तरह मानती हूँ / वे साध्वीयाँ अपने प्राणों की तरह पंचमहाव्रतों का निरतिचार पालन करती हैं। लोभ तो उनके बर्ताव में बिलकुल भी नहीं दिखाई देता हैं। वे संवेग, संयम, समता और शास्त्रों का स्वाध्याय इन बातों में दिनरात तल्लीन रहती हैं। आत्म प्रशंसा और परनिंदा तो वे बिलकुल नहीं करती हैं। कोई ज्ञानार्थी स्त्रीयाँ उनके पास जाती हैं, तो वे उन्हें सम्यग्ज्ञान का उपदेश ही देती हैं। . हे सखी, इन साध्वियों ने मुझे बड़ी मात्रा में धर्मज्ञान सिखाया हैं, प्रदान किया है, उनके इस उपकार का बदला चुकाने में तो मैं बिलकुल असमर्थ हूँ। यदि मैं तेरी तरह उनकी निंदाद्वेष करूँ, इर्ष्या-असूया उनके प्रति मन में रखू और उसे प्रकट करूँ, तो मैं अवश्य नरक में जा पदूंगी। तेरी इस निंदा के कारण उनका तो कुछ भी अशुभ नहीं होता है, इसके विपरीत उनके अशुभ कर्मों का क्षय होता है। मुझे तो इन साध्वियों ने पशु से मनुष्य बना दिया है। इसलिए मैं तो उनकी शुभचिंतक हूँ, हितैषी हूँ। जन्म-जन्मांतर में भी उन्हीं की शिष्या बनने की इच्छा मैं रखती हूँ। वे महासंयमी, महाब्रह्मचारी और परोपकाररत साध्वियाँ तो निरंतर वंदनीय, नमस्करणीय और उपास्य-पूजनीय हैं। इसलिए उनकी इस प्रकार निंदा करना तेरे लिए बिलकुल उचित नहीं है। ऐसी उत्तम साध्वियों की निंदा करके उस पाप से तू क्यों अपनी आत्मा को पाप से बोझिल और भारी बना देती है ? ऐसा करते रहने से तो तेरा पुण्यरुपी वृक्ष क्रमश: एक-न-एक दिन सूख कर नष्ट हो जाएगा। साधुसंतो की निंदा करना यह अत्यंत उग्र पाप है।" __ मंत्रीपुत्री की ओर से ऐसा सनसनाता उत्तर पाकर राजपुत्री मौन धारण कर चुपचाप अपने महल की और चली गई। अपनी शक्ति के अनुसार देवगुरू-धर्म की निंदा करनेवालों का प्रतिकार न करना यह महापाप हैं। मंत्रीपुत्री तो सुदेव-गुरू-धर्म की परमभक्त थी। वह महान् विदुषी थी। फिर वह अपनी परम उपास्य और वंदनीय साध्वियों की निंदा सुनकर क्यों चुप रहती ? बोलने के अवसर पर मनुष्य को बोलना ही चाहिए। उस समय 'हमारा प्रेम टूट जाएगा', 'उसकी और से मुझे कोई हानि उठानी पड़ेगी' इस तरह का भय सच्चे गुरुभक्त को कभी नहीं होता है। दूसरे दिन राजपुत्री तिलकमंजरी फिर से मंत्रीपुत्री रुपवती के पास आई / उस समय मंत्रीपुत्री मोतियों की माला से कर्णफूल बनाने में लगी हुई थी। दोनों सखियाँ बैठ कर आपस में वार्ताविनोद-हँसीमजाक की बातें करने लगीं। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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