Book Title: Chandraraj Charitra
Author(s): Bhupendrasuri
Publisher: Saudharm Sandesh Prakashan Trust

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Page 257
________________ 252. श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र कलंकित करती है ? ये महाव्रतधारी साध्वीजी जब किसी के स्वयं खुशी से आग्रह के साथ दिए बिना और आवश्यकता न हो तो घास का एक तिनका भी कभी ग्रहण नहीं करती है। फिर वे मणि-माणेक और रत्नों से जडित मोती का मूल्यवान् कर्णफूल क्यों चुरा लेंगी ? दूसरी बात यह कि उसे लेकर वे करेंगी भी क्या ? उन्होंने तो अपने घर में होनेवाले मणि-माणेक, सोना-चाँदी का स्वेच्छा से वैराग्यपूर्वक त्याग कर के संन्यासदीक्षा ली होती हैं। उसी दीक्षा के समय वे आजीवन सूक्ष्म चोरी का भी 'त्रिविधे त्रिविधे' प्रतिज्ञा के साथ त्याग करती हैं। ऐसी महापवित्र साध्वियों के बारे में चोरी की शंका करना भी महापाप का कारण है। हे सखी, ये साध्वियाँ तेरे उन कुयोगी तापसों की तरह जहाँ-वहाँ भटकती नहीं है, बल्कि वे तो उपशमरूपी अलंकार से निरंतर अलंकृत रहती हैं। उनके मन में ऐसे तुच्छ पार्थिव आभूषण को चुराने की बात आ ही कैसे सकती है ? उनके लिए ऐसे आभूषण का मूल्य ही क्या ऐसी महासती साध्विजी के लिए ऐसा अधम बात तो अधम मनुष्य के मुँह से ही निकल सकती है। ऐसी साध्विजी तो धनसंपत्ति की राशि सामने खुली पड़ी हो, तो भी उस पर दृष्टि तक नहीं डालती हैं / वे ईर्यासभिति से ठीक ढंग से देखी हुई भूमि पर ही अपने कदम रखती हैं। ऐसी साध्वी जी पर चोरी का आरोप करना तेरे लिए बिलकुल अशोभनीय है, अनुचित है / इसीको कहते हैं दृढ़ श्रद्धाभाव ! रूपवती ने अपनी सखी तिलकमंजरी से अंत में कहा, “एसी महासती सुशीला . साध्वीजी मेरे कान का आभूषण चोरी करे ये त्रिकाल में भी असंभव है। इसीलिए मुझे तेरी बात . पर बिलकुल विश्वास नहीं होता हैं।" ___मंत्रीपुत्री कही हुई सभी बातें गंभीर चेहरा करके सुनकर राजपुत्री ने उससे कहा, "हे बहन, तू ऐसी बात क्यों कहती है ? आखिर हाथ कंगन को आरसी क्या ? अगर तेरे मन में आशका है, तो तू मेरे साथ चल / तेरी उस साध्वीजी के उपाश्रय में हम दोनों जाएँगी / वहाँ जाकर हम पूछताछ करेंगी, खोज करेंगी। यदि उस साध्वी के वस्त्र के लटकते हुए हिस्से में तेरा वह कर्णफूल बँधा मिला, तो तू मेरी बात पर विश्वास कर ले। अगर वह कर्णफूल बँधा हुआ न मिले, तो तू यह मान ले कि मैं एक बार नहीं, हजार बार झूठी हूँ, बस ?" राजपुत्री की बात स्वीकार कर, रूपवती राजपुत्री को साथ लेकर साध्वीजी के पास उपाश्रय में चली आई। उस समय साध्वियाँ आहारपानी ग्रहण करने की तैयारी में थी। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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