Book Title: Chandraraj Charitra
Author(s): Bhupendrasuri
Publisher: Saudharm Sandesh Prakashan Trust

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Page 274
________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 269 की ओर चल पड़े। चंद्रराजर्षि के पुत्र, परिवार के अन्य सदस्य औप आभापुरीवासी लोग उन्हें आभापुरी से विदा करने के लिए दूर तक साथ गए। अब चंद्रराजर्षि को विदा देते समय, गुणशेखर और मणिशेखर आदि पुत्रों की तरफ से गुणशेखर ने चंद्रराजर्षि से आँखों में आँसू भरकर गद्गद् कंठ से कहा, "हे पूज्य / आज आप तो हम सबके हार्दिक प्रेम का त्याग कर, मोक्षप्राप्ति के रास्ते पर चल पडे है / लेकिन हम आपको कभी नहीं भूलेंगे / आपने तो तीन खंडों के राज्य को तृणवत् तुच्छ मानकर उसका त्याग कर दिया। लेकिन हम में ऐसा त्याग करने की सामर्थ्य कब आएगी ? आपने अपना तो कल्याण कर लिया, लेकिन हमारा कल्याण कौन करेगा ? है पूज्य, आप अब भले ही चले जाइए, लेकिन हमारी इतनी प्रार्थना स्वीकार कीजिए / आप हमें कभी भुला मत दीजिए / कभी आभापुरी पधार कर हमें आपके पवित्र दर्शन करने का अवसर अवश्य दीजिए।" . - चंद्र राजर्षि ने उन्हें विदा करने के लिए आए हुए अपने पुत्रों को और आभापुरीवासियों को ‘धर्मलाभ' का आशीर्वाद दिया और समयोचित हितशिक्षा की बातें कहीं। फिर वे अपने गुरु और अन्य साथी शिष्यो के साथ आभापुरी से बाहर चल पड़े। . चंद्र महर्षि तथा अन्य परिवार को आगे बढ़ते देखकर गुणशेखर आदि पुत्र और आभापुरीवासी विरह वेदना से सिसक-सिसक कर रोते-रोते ही वे सब आभापुरी लौट चले। दीक्षा ग्रहण करने के बाद सभी सांसारिक उपाधियों से मुक्त हुए चंद्र राजर्षि ने स्थविर मुनिराज के पास रहकर ज्ञानाध्ययन का प्रारंभ किया। शास्त्राध्ययन तो साधु जीवन का प्राण है, क्योंकि उसी की सहायता से संयम का पालन आसान बन जाता है। शास्त्राध्ययन से मन और इंद्रियाँ काबू से रहती है और धीरे-धीरे समय के अनुसार संवेग-वैराग्य का भाव वृद्धिगत होता जाता है। स्वाध्याय से लोकालोक का ज्ञान प्राप्त होता है, समकित और संयम के भाव निर्मल बनते हैं। अंत में शास्त्राध्यायन से ही आत्माज्ञान और केवलज्ञान प्राप्त हो जाता है। इसीलिए | चंद्रमहर्षि ने दीक्षा लेने के तुरंत बाद शास्त्राध्यायन प्रारंभ किया। दीक्षा में आवश्यक होनेवाली | संयम की सभी क्रियाओं में उन्होंने निपुणता प्राप्त कर ली। इसी प्रकार सुमति मुनि, शिरणजमुनि आदि भी चंद्रराजर्षि से विनय से पेश आते हुए शास्त्राध्ययन और संयमक्रियाओं मेंतल्लीन हो गए। गुणावली, प्रेमला आदि 700 साध्वियाँ भी अपनी प्रवर्तिनी साध्वीजी से साध्वाचार की शिक्षा पाकर ज्ञानाध्ययन में तल्लीन हो कर जप-तप और संयम की अन्य क्रियाओं में मग्न रहने लगीं। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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