________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 251 साध्वीजी ने आहार-पानी ग्रहण किया / रुपवती ने उन्हें वंदना की। साध्वीजी ने उसे 'धर्मलाभ' कह कर आशीर्वाद दिया। अब साध्वीजी जाने लगी तो मंत्रीपुत्री घर के दरवाजे तक उन्हें विदा करने गई। फिर वह वापस चली आई और उसने थाल पर दृष्टि डाली, तो थाल में / मोतियों का वह कर्णफूल गायब था, जिसे वह अभी रख कर साध्वीजी को आहारपानी देने को गई थी। मंत्रीपुत्री को लगा कि मेरी सहेली राजपुत्री ने ही मज़ाक करने के लिए वह आभूषण थाल में से उठा कर कहीं छिपा रखा है। मंत्रीपुत्री रुपवती ने अपनी सखी राजपुत्री तिलकमंजरी से कहा, "हे सखी, तू क्यों नेरा मज़ाक उड़ा रही है ? मेरे कान का वह कर्णफूल मुझे दे दे। वह कर्णफूल तो तूने ही कही कहीं छिपा रखा हैं / कहाँ रखा है ? दे दे न वह कर्णफूल / अभी तो वह कर्णफूल पूरा बना भी नहीं, उसका कुछ काम अभी बाकी है। हे सखी, यदि तुझे वह कर्णफूल बहुत पसंद आया हैं, तो वह तू अपने पास रख ले। यह दूसरे कान का कर्णफूल भी मैं तुझे पूरा तैयार कर दे देती हूँ, वह भी तू रख ले।" ___ मंत्रीपुत्री की बात सुन कर राजपुत्री तिलकमंजरी ने उससे कहा, "हे सखो मैंने ऐसा अनुचित हँसीमजाक करना कभी सीखा ही नहीं हैं। ऐसा मज़ाक करने से बिना काम का झगडा होता हैं, आपस में होनेवाला प्रेमभाव टुट जाता है / देख सखी, मैं सच कहती हूँ कि मैंने तेरा कर्णफूल नहीं लिया है। हाँ, जब तू घर में घी लाने गई, तब यहाँ आहारपानी लेने आई हुई साध्वीजी ने तेरा वह कर्णफूल थाल में से उठा कर अपने कपड़े में छिपा दिया था। मैंने अपनी इन्हीं आँखों से साध्वीजी को तेरे वह कर्णफूल थाल में से लेते देखा था, लेकिन मैंने जान बूझ कर कुछ भी न देखने का बहाना किया था और नज़र दूसरी ओर कर ली थी। लेकिन मैं यह सोच कर चुप रही कि मैं साध्वीजी की चोरी की बात तुझसे कहूँ तो तुझे शायद पसंद न आए। और तू कोई उल्टा-सीधा अर्थ मेरी बात का कर न ले। लेकिन हे सखी, तूने तो मुझ पर ही व्यर्थ चोरी का इल्जाम लगा दिया, इसलिए मजबूर होकर मुझे सच्चाई बतानी पड़ी। मैं तेरी सौगंध खाकर कहती हूँ कि मैंने तेरा कर्णफूल नहीं लिया / मुझ पर व्यर्थ न कर, क्योंकि कर्णफूल तो साध्वीजी कपड़े में छिपा कर ले गई। राजपुत्री की बात सुनकर मंत्रीपुत्री ने उससे कहा, "हे सखी, शायद यह सच है कि तूने मेरा कर्णफूल नहीं लिया। लेकिन तू साध्वीजी पर ऐसा व्यर्थ आरोप क्यों लगा रही हैं ? अपने मुँह से ऐसी बात कहते समय तुझे जरा-सी भी शर्म नहीं आती है ? पाप का डर नहीं लगता है ? बिना किसी कारण के साध्वीजी पर ऐसा झूठमूठ का इल्जाम लगा कर तू उन्हें क्यों P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust