Book Title: Chandraraj Charitra
Author(s): Bhupendrasuri
Publisher: Saudharm Sandesh Prakashan Trust

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Page 252
________________ 247 मा रहगा। श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र = एक बार राजपुत्री और मंत्रीपुत्री दोनों एकांत में बैठी थीं। दोनों सखियों ने विचार किया के हम दोनों के बीच दूध-पानी के समान एक दूसरे के प्रति पूर्ण प्रेम है। हम दोनों एक दूसरे के बना एक क्षण के लिए भी नहीं रह सकती हैं ? इसलिए यदि हम दोनों अलग-अलग पुरुषों से वैवाह करेंगी, तो हमें हरदम के लिए एक दूसरे से दूर रहना पड़ेगा। लेकिन यदि हम दोनों एक ही अच्छे वर के साथ विवाह करके उसकी पत्नियाँ बन जाएँ तो जीवन भर हम दोनों को साथ रहने को मिलेगा और हम दोनों हरदम प्रेम के सागर में डूबती रह सकेंगी। हमारा प्रेम अखंड बना रहेगा। / दोनों को एक दूसरे का यह विचार बहुत पसंद आ गया / इसीलिए उन दोनों ने उसी समय एक ही वर के साथ विवाह करने का निश्चय किया / मनुष्य जिस विचार को बार-बार मुष्ट करता है उस विचार के लिए अनुकूल वातावरण बना देने में कुदरत भी बहुत सहायता करती हैं। / राजपुत्री और मंत्रीपुत्री के बीच यह प्रेमसंबंध तो बहुत बड़ी मात्रा में था। लेकिन बाद में मंत्रीपुत्री को पता चला कि मेरी सहेली यह राजपुत्री तिलकमंजरी जैन धर्म के प्रति द्वेषभाव मन में रखती हैं। लेकिन मंत्रीपुत्री बहुत चतुर थी। वह आपसी प्रेमसंबंध कहीं टूट न जाए, और राजपुत्री को बुरा न लगे इस विचार से वह इस धर्मचर्चा की बात राजपुत्री के सामने बिलकुल नहीं करती थी। लेकिन मंत्रीपुत्री के घर प्रतिदिन आहारपानी लेने के लिए साध्वी महाराज आती थीं और मंत्रीपुत्री उनको भक्तिभाव से वंदना करके आहारपानी परोसती-देती ! जो मनुष्य धर्मप्रिय होता हैं उसे धर्मदाता गुरु महाराज प्रिय लगते ही हैं। और जिसे जो प्रिय होता है, वह उसकी भक्ति किए बिना नहीं रहता हैं। जब घर में आई हुई साध्वी महाराज आहारपानी लेकर चली जाती, तो मंत्रीपुत्री उन्हें घर के दरवाजे तक विदा करने छोड़ने के लिए भक्तिभाव से चली आती थी। मंत्रीपुत्री साध्वी महाराजों के प्रति यह भक्तिभाव रख कर उनकी सेवा करती है, यह = बात राजपुत्री को बिलकुल पसंद नहीं आती थी। इसलिए वह अपने हृदय में जलती थी। एक बार राजपुत्री मंत्रीपुत्री के पास बैठ कर उसे बताने लगी, “हे सखी, तू इन अपवित्र और पाखंडी = साध्वियों की जो भक्ति करती हैं, वह मुझे बिलकुल पसंद नहीं है। भले ही तुझे मेरी बात प्रिय , लगे या अप्रिय, लेकिन मुझे यह अवश्य बताना चाहिए कि ये साध्वियाँ नितान्त लज्जा और न दाक्षिण्यता रहित होती हैं। इसलिए तेरे लिए उनकी संगति में रहना और नकली भक्ति करना = P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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