________________ 176 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र विमलापुरी में चंद्र राजा के साथ बड़ी धामधूम से संपन्न हुआ था। यह बात आज मैं तुम्हार सामने ही स्पष्ट रूप में कह रहा हूँ। मेरी पुत्री का उसके पति चंद्र राजा से मिलन कब होगा, भगवान जाने ! लेकिन तुम्हारे पास होनेवाला यह मुर्गा मेरी पुत्री के पति के घर का होने से उस बहुत पसंद आया है। इसलिए यदि तुम यह मुर्गा मुझे दे दोगे, तो मैं तुम्हारा उपकार आजीवन नहीं भूलूँगा। इतना ही नहीं, बल्कि तुम्हें मुँह माँगी चीज मैं दे दूंगा। हे नटराज, वैसे मेरा तुम पर कोई अधिकार नहीं है / इसलिए मैं तुमसे यह मुगा जबर्दस्ती नहीं लेना चाहता हूँ। लेकिन तुम एक भले आदमी हो इसलिए मुझे पूरा विश्वास ह कि तुम मेरी बात मान कर मेरी माँग पूरी कर दोगे और मेरी बेटी की खुशी के लिए यह मुगा मुझ दे दोगे। नटराज शिवकुमार ने राजा की कही हुई सारी बातें शांति से सुन लीं और फिर राजा स कहा, हे नराधिप ! यह मुर्गा तो हमारा सर्वस्व है। इसलिए हम किसी भी हालत में यह मुगा ता आपको नहीं दे सकते हैं। फिर भी मैं आपकी ओर से हमारे मालिक मुर्गे से प्रार्थना करूँगा। यदि | हमारे मालिक मुर्गे की आपके पास रहने की इच्छा हो, तो हम खुशी से वह मुर्गा आपको अवश्य सौंप देगे। मैं अभी जाकर अपने मालिक मुर्गे से पूछ लेता हूँ। न राजा से इतना कह कर नटराज शिवकुमार अपने मुकाम के स्थान पर आया। उसने | अपनी पुत्री शिवमाला से राजा के यहाँ मुर्गे के बारे में हुई सारी बातें कहीं। जब मुर्गे के कानों में | यह बात पड़ी, तो वह मन में बहुत खुश हुआ। उसने सोचा, चलो, रोगी को जो बात पसंद है, वही खाने को वैद्य ने कहा। उसके मन में यह भी विचार आया कि वैसे इस मुर्गे के रूप में होते हुए, मेरे लिए इस विमलापुरी में आकर राजा और प्रियतम प्रेमलालच्छी से मिलना कैसे संभव हो सकता था ? पूर्वजन्म में किए हुए किसी पुण्य के फलस्वरूप ही यह सारी अनुकूल स्थिति निर्माण हो गई है। अब वास्तव में यह नटराज शिवकुमार मुझे यहां मेरी प्रियतमा प्रेमला को सौंप कर यहाँ / से जाएगा तो बहुत अच्छा होगा। = मुर्गे को अत्यंत प्रसन्नचित देखकर और उसके मन के भाव जान कर शिवमाला बहुत : खिन्न हो गई और मुर्गे से कहने लगी, हे स्वामी, मेरा ऐसा कौन-सा अपराध हुआ है, जो आप = मुझ पर ऐसे नाराज हो गए है। मैंने आपकी सेवा करने में कोई कसर नहीं रखी हैं ? मैंने अपने P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust