________________ 178 श्री चन्द्रराजर्षि चरि= लेकिन शिवमाला, ये सारी बातें जानते हुए भी मैं तेरा त्याग करने के लिए क्यों तैया हो गया, इसका रहस्य तुम पर प्रकट करने में मुझे कोई संकोच नहीं है। मैं खुले अंत:करणE सारी वस्तुस्थिति तुझे बताता हूँ, उसे तू ध्यान से सुन ले। हे शिवमाला ! विमलापुरी के राजा मकरध्वज की पुत्री प्रेमलालच्छी से सोलह वर्ष पहल मेरा विवाह हो चुका है। इस विवाह के कारण ही मेरी सौतेली माँ ने मुझे अपनी मंत्रशक्ति के बल पर मनुष्य से मुर्गा बना दिया। इस समय यह बात याद आते ही मेरा मन काँप उठता है, मर हृदय के टुकड़े हो जाते हैं। लेकिन कर्म के द्वारा दिया गया दुःख भोगे बिना किसको इस संसार में छुटकारा मिल सकता है ? कहा भी गया है - नाभुक्तं क्षीयते कर्मः। मेरी सौतेली माँ तो मेरे दुःख में सिर्फ निमित्त बनी है। मेरे दुखों का मुख्य कारण तो मेरे पूर्वजन्म में किए हुए कुकर्म ही हैं। हे शिवमाला, तू मुझे वीरमती के क्रूर पंजे में से छुड़ा कर यहाँ तक ले आई है / तरा उपकार तो मैं कभी नहीं भूल सकता। लेकिन मैं प्रेमला के वियोग से बहुत दु:खी हूँ। वह भी मेरे लम्बे विरह के कारण अत्यंत दु:खी है। मेरी प्रिया प्रेमला के मन में तो यह बात आती है कि अपने पति से मेरा पुनर्मिलन कभी होगा भी या नहीं? शिवमाला, इस प्रेमला के लिए ही में यहा / रहने का इच्छुक हूँ। मेरे यहाँ रहने का अन्य कोई कारण नहीं है। मेरी यह इच्छा तभी पूरी हा सकती है जब तू खुशी से मुझे प्रेमला को सौंप दे। तुझे दु:खी करके या तेरे दिल को दुखा कर ___ मैं यहाँ नहीं रहना चाहता हूँ / तू ही निर्णय कर ले! मुर्गे के रूप में होनेवाले चंद्रराजा की कही हई ये बातें सुन कर शिवमाला का मन आर | मुँह म्लान हो गया। उसके तनमन में उदासी व्याप्त हो गई। उसे ऐसा लगा कि मेरा सर्वस्व हा i लुट गया / शिवमाला की आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगी। वह सिसक-सिसक कर रा _पड़ी। शास्त्रकार कहते हैं - स्नेहमूलानि दुःखानि ! अर्थात्, दुःख का मूल स्नेह ही है। शिवमाला भी इसी चिरंतन सत्य का अनुभव कर रही थी। जो स्नेह करने में सुख मानता है, उसे स्नेह का नाश होने पर दु:ख अवश्य होता है। इस संसार की वस्तुओं से स्नेह करके कौन सुखी हुआ है ? मन का दुःख बहुत संयम से मन में ही छिपाते हुए और अपने आप पर नियंत्रण पाकर, हृदय को मजबूत बना कर सद्गदित कंठ से शिवमाला ने मुर्गे से कहा, हे आभानरेश, मुझे इस P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust