Book Title: Chandraraj Charitra
Author(s): Bhupendrasuri
Publisher: Saudharm Sandesh Prakashan Trust

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Page 235
________________ aperZAMAAL 230 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र यदि आप स्त्रीहत्या के पाप से डरते है और आपमें यदि जरा-सा भी दया का अंश हो, तो आप तुरन्त मेरी प्रार्थना स्वीकार कर लीजिए और मुझे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लीजिए।" ___इसपर चंद्रराजा ने विद्याधरी को शास्त्रसंमत लेकिन सनसनाता उत्तर देते हुए कहा, "हे स्त्री, मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि स्त्रीहत्या के पाप से शीलभंग का पाप अधिक बड़ा है। शीलभंग करके जिंदा रहने की अपेक्षा आत्महत्या करके मर जाना सौ गुना अच्छा है। तू मुझे स्त्रीहत्या के पाप से डरा कर मुझे शीलभ्रष्ट करने की इच्छा रखती है। लेकिन याद रख, तेरी गंदी इच्छा कभी मुझसे पूरी नहीं होगी। मैं भी धर्भशास्त्र के रहस्यों को अच्छी तरह जानता हूँ। कौनसा काम करने में अधिक पाप है और कौनसा काम करने में कम पाप है, यह तू मुझे समझाने-सिखाने की कोशिश मत कर / इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। शील मेरा प्राण है। इसलिए शील की रक्षा के लिए यदि मुझे अपने प्राण भी देने पड़े, तो मैं तैयार हूँ। लेकिन किसी भी हालत में मैं शीलभंग नहीं होने दूंगा। ऐ स्त्री, देख, रामचंद्रजी की पत्नी सती सीता का अपहरण करके उसे रावण ने परेशान किया, तो उस रावण का राज्य, उसका सारा वैभव, उसकी सोने की लंका तो नष्ट हुए ही, लेकिन उसे अपने प्राणों से भी हाथ धोना पड़ा। द्रौपदी का अपहरण करनेवाले की श्रीकृष्ण के हाथों से कैसी दुर्गति हुई थी, उसे जरा याद कर / परस्त्री रत-परायण होनेवाले ऐसे हजारों राजा-महाराजा बरबाद हुए हैं। उन्हें इस संसार में अपमानित और कलंकित होना पड़ा है। परस्त्रीगमन करके कोई पुरूष सुखी हुआ हैं, ऐसा एक भी उदाहरण मेरे सामने नहीं हैं। इसके विपरीत परस्त्री त्याग से संसार में सुखी हुए सुदर्शन सेठ, श्री रामचंद्रजी जैसे हजारों महापुरुषों के उदाहरण मिलते हैं। मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि कामिनी तो भवसागर में डुबोनेवाली और पुरुष के गले में बाँधी गई बहुत बड़ी शिला है। कामिनी के भय से ब्रह्मचारी रहनेवाले कितने ही पुरुष मिलते हैं। अनेक पुरुष इस संसार में ऐसे भी मिलते है जो अपनी विवाहिता पत्नी का त्याग कर शाश्वत और अनुत्तर मोक्षसुख का अनुभव करते हैं। परस्त्री रूपी पत्थर की नाव में बैठकर जानेवाले पुरुष संसारसागर में डूब जाते हैं। अब तक इस संसारसागर से मस्तक बाहर निकाल कर देखने में भी वे समर्थ नहीं हो सके हैं। परस्त्रीगमन के कारण श्रेष्ठिपुत्र ललितांगकुमार की कैसी दुर्गति हुई ? क्या इसे तू नहीं जानती है ? मैं कोई ऐसा अज्ञानी पुरुष नहीं हूँ कि जानबूझ कर आपत्ति को निमंत्रण दे दूँ! तू तो मुझे स्त्रीहत्या के पाप से धबरा रही है, लेकिन मैं धबराता हूँ भवभय से / मैं अपने चारित्र्यकीआचरण की दृष्टि से कभी भ्रष्ट नहीं होऊंगा। इस बात की तू गाँठ बाँध ले। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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