Book Title: Chandraraj Charitra
Author(s): Bhupendrasuri
Publisher: Saudharm Sandesh Prakashan Trust

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Page 239
________________ 234 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र अब राजा चंद्र स्वयं अपनी पटरानी गुणावली के महल में चले गए / लम्बे विरह के बाद अपने पति राजा चंद्र को अपने महल में आते देख कर रानी गुणावली ने उनका अत्यंत हर्ष से स्वागत किया। अपने पति को फिर से मनुष्य के रूप में सामने पाकर गुणावली का आनंद उसके हृदयसागर में समा नहीं रहा था / वह उछल-उछल कर हृदयसागर से बाहर आकर प्रकट हो रहा था। - सोलह-सोलह वर्षों की लम्बी अवधि के पतिविरह के बाद आज उसी प्राणनाथ पति को अपने महल में पधारते हुए देख कर रानी ने राजा को अपने हृदयमंदिर में प्रविष्ट किया। रानी गुणावली ने अपने पति की चरणरज लेकर अपने माथे पर चढाई / रत्नों का जो सिंहासन पति के बिना खाली पड़ा था, उस पर गुणावली ने अपने प्राणाधार को हाथ पकड़कर प्रेम से ला बिठाया। उसका हृदय आनंद से ऐसा भर गया था कि कुछेक क्षणों के लिए तो उसके मुँह से शब्द भी नहीं फूटता था। गुणावली का हृदय भर आया था, कंठ सँध गया था, आँखों से आनंद के आँसुओं को धारा निरंतर बहती जा रही थी। वह पति के गले लग कर सिसक-सिसक कर रो उठी। कुछ देर तक रो कर उसके हृदय का सारा दु:ख हलका हो गया और वह स्वस्थ हो गई। चंद्रराजा ने गुणावली को धीरज बँधाया, उसे सांत्वना दी और उसके मस्तक पर हाथ रख कर उसके प्रति अपना प्रेम प्रकट किया। फिर राजा ने उससे कहा, "हे प्रिये, अब तेरे रोने के दिन बीत गए. अब तेरे हँसने के-हँसी खुशी के दिन आ गए हैं। इसलिए अब भूतकाल की दु:खद बातें हरदम के लिए भूल जा / हमारे भाग्य में जो दु:खभोग लिखा था, उसको हमने सोलह वर्षों तक भोग लिया। अब हमें इस बात में सावधान रहना है कि ऐसा दुष्ट कर्मबंध फिर हमारे जीवन में न बँधे / भूतकाल के जीवन में से हमें यही ग्रहण करना है।" अपने पति राजा की सांत्वना देनेवाली ये बातें और गहरा स्नेहभाव देख कर रानी गुणावली खुश हो गई ।उसने बड़े प्रेम से अपने प्राणनाथ को सुंगधित जलसे नहलाया, उनके सारे शरीर पर सुगंधित विलेपन किया और विविध प्रकार के व्यंजनों से युक्त स्वादिष्ट भोजन कराया। ऐसी पतिभक्ति दिखा कर वह मन-ही-मन बहुत हर्षित हो गई। पतिदेव के फिर से घर आ जाने से गुणावली का मन स्वस्थ हो गया / अब इस राजारानी के दिन बहुत सुखपूर्वक बीतने लगे। गुणावली के साथ प्रेमला और अन्य रानियों का परस्पर प्रेमभाव ऐसा गहरा था कि वे शरीर से ही भिन्न-भिन्न लगती थीं, लेकिन सबके हृदय एक दूसरे से पूरी तरह मिले हुए थे। वे सब एक दूसरे से ऐसा व्यवहार करती थीं, मानो सगी बहनें हों / हँसी-विनीद-वार्तालाप में सब का समय बहुत मजे में कटता था। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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