________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 209 मेरा मन खिन्न हो उठता है कि उस समय तूने मेरे प्रेम की परवाह किए बिना सास के वाग्जाल पर विश्वास किया और उसके मायाजाल में फंसकर मेरी उपेक्षा की। फिर भी इसमें मैं तेरा अपराध नहीं मानता हूँ। सार संसार यही कहता है कि स्त्री किसी की हो नहीं सकती,' स्त्री का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए', 'स्त्री माया का मंदिर है। स्त्री के चारित्र्य का पार ब्रह्मा भी नहीं पा सकता हैं।' संसार चाहे जो कहे, लेकिन मेरा दृढ़ विश्वास हैं कि संसार की स्त्री के संबंध में जो राय है, उसमें तू अकेली अपवादस्वरूप हैं। मैं जानता हूँ कि मेरी सौतेली माँ ने ही उस समय उल्टीसीधी बातें कह कर तेरी मति भ्रमित कर दी थी। इसलिए उसके वाग्जाल पर विश्वास रख कर तू उसके कहने के अनुसार चलती रही। मैं जानता हूँ कि तूं महासती हैं, कुलवान् है / इसीलिए __ मैं तुझे एक क्षण के लिए भी नहीं भूल सकता हूँ। तुझे मुझसे किसी तरह का अंतर नहीं रखना हैं। सच्चा प्रेम अंतर नहीं रखता है। जहाँ अंतर होता हैं, वहाँ सच्चा प्रेम नहीं होता हैं। मेरे मन में तो तेरे प्रति पहले जैसा ही प्रेम अब भी है। तूने मुझसे छिपा कर अपनी सास के साथ संबंध जोड़ा और उसी में सुख मान लिया / इन सारी बातों में मेरी अनुमति लेना तूने | उचित नहीं समझा। इसलिए उसका जो परिणाम होना था, सो हो ही गया। उसका कटु फल तूने भी भोगा है और मैंने भी! सच है, भाग्य में जैसा लिखा होता हैं, उसीके अनुकूल मनुष्य की बुद्धि काम करने लगती है। ऐसे समय पर सहायक भी ऐसे ही मिल जाते हैं। ऐसे समय मनुष्य का पुरुषार्थ भी गायब-सा होता है। ___मेरे जीवन में भी मेरे पूर्वजन्म के किसी अशुभ कर्म का उदय होनेवाला होगा, इसीलिए तुझे मुझसे मेरी सौतेली माँ प्रिय लगी और तू उसकी बातों मे पूरी तरह फँस गई / खैर, जो होना था, सो हो गया और उसे हम दोनों टाल भी नहीं सकते थे। अब वे बातें बार-बार याद करने से क्या लाभ ? मनुष्य के भाग्य में जो सुख-दु:ख लिखा हुआ होता हैं, मनुष्य को वह भोगना ही पड़ता है / भाग्य में लिखी हुई बातों में हेरफेर करने में कौन समर्थ है ? कर्म की गति सचमुच बड़ी विचित्र हैं। कर्म की गति रोकने की सामर्थ्य किस में है ? जब मुझे तेरी गलती याद आ जाती हैं, तब क्षणभर के लिए ही सही, तेरे प्रति मेरे मन में क्रोध का भाव उत्पन्न हो जाता है / लेकिन तेरा नि:स्वार्थ प्रेम याद आते ही मेरा वह क्रोध शांत ही जाता है। स्तु, पत्र में इससे अधिक क्या लिखू ? बीती हुई बातें भूल जाने में ही मनुष्य P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust