Book Title: Chandraraj Charitra
Author(s): Bhupendrasuri
Publisher: Saudharm Sandesh Prakashan Trust

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Page 223
________________ 218 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र शोभा में वृद्धि होगी ? माताजी, मैं तो आपसे यही प्रार्थना करता हूँ कि आप मेरे साथ युद्ध करने का साहस मत कीजिए। फिर भी यदि आप की इच्छा मेरे साथ युद्ध करने की है, तो आइए, मैं इसके लिए भी तैयार हूँ। ___ माताजी, आपका यहाँ आने का उद्देश्य क्या है, यह मैं पहले ही जान चुका हूँ। आपके * स्वभाव से मैं बहुत अच्छी तरह परिचित हूँ लेकिन इस समय उसका वर्णन करना मुझे उचित नहीं लगता हैं / पुत्र के साथ माँ का युद्ध हुआ यह जान कर लोग हँसेंगे। इसलिए मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप इस अनुचित युद्ध के लिए मुझे विवश मत कीजिए। माताजी, मेरी बात मान : जाइए।" चंद्र राजा की बात सुन कर क्रोध से वीरमती का खून खौल उठा। क्रोधान्ध होकर उसने आकाश में से ही चंद्रराजा पर खड्ग फेंका। लेकिन वह राजा के शरीर पर पहने हुए कवच से टकराया। राजा का बाल भी बाँका न हुआ। लेकिन वीरमती की तीखी धार की वह तलवार दैवी प्रभाव से फिर उछल कर वीरमती के वक्षस्थल पर जा गिरी। इस प्रहार से वीरमती बेसुध होकर धरती पर जा गिरी। मनुष्य के पुण्य का जब क्षय होता है, तब उसके पास भले ही हजारों विद्याएँ या सहायता के लिए हजारों देवता क्यों न हो, वे भी उस मनुष्य की रक्षा नहीं कर सकते हैं। रावण के पास तप की शक्ति से सिद्ध की हुई एक हजार विद्याएँ थीं। फिर भी वह युद्ध में अंत में राम-लक्ष्मण के हाथों हारा और मर कर नरक में ही गया था न ? चंद्र राजा के प्रबल पुण्योदय के कारण वीरमती की छाती पर प्रहार करने के बाद वह खङग वापस घूम कर चंद्र राजा के पास चला आया / चंद्र राजा ने यह खङग सम्मान से अपने पास रख लिया। ____ अपने ही खङग के जोरदार प्रहार से बेहीश होकर भूमि पर गिरी हुई वीरमती अभी / जिंदा है यह जानकर और दुर्जन को दंड देना उचित हैं ऐसा समझ कर चंद्र राजा ने वीरमती के पाँव पकड़ कर उसे आकाश की ओर उछाला, घुमाया और जैसे धोबी वस्त्र को पटक-पटक कर धोता हैं, वैसे ही चंद्र राजा ने वीरमती को पास में पड़ी हुई पत्थर की शिला पर पटक-पटक कर उसके प्राणों को परलोक में पहुंचा दिया। प्राणों से रहित होनेवाला वीरमती का पार्थिव शरीर वहाँ गीदडों चीलों के भक्षण के लिए वहीं पड़ा रहा। वीरमती आजीवन किए हुए भयंकर पापों का फल चखने के लिए छठे नरक में पहुँच गई / संसार में महापापी जीवों की ऐसी ही दुर्गति होती है। मनुष्य पाप तो एक क्षण में कर डालता है, लेकिन उस पाप की सजा उसे अनेक सागरोपम तक भोगनी पड़ती है / इसीलिए करुणा के सागर होनेवाले ज्ञानी जन बार बार संसारी जीवों को चेतावनी देते हैं - P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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