________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 227 - लीलाधर की पत्नी लीलावती को कहीं से यह समाचार मिल गया कि उसका धर्मबंधु आभानरेश राजा चंद्र इस समय परिवार के साथ पोतनपुर में डेरा डाले हुए हैं। इसलिए उसने अपने पति लीलाधर की अनुमति ली और फिर चंद्रराजा को सपरिवार अपने घर पधारने का निमंत्रण उसने दिया। लीलावती उन सबको सम्मान से अपने घर ले भी आई। उसने चंद्र राजा और उसके परिवार को स्वादिष्ठ आहार-पानी देकर खुश कर दिया। चंद्र राजा ने भी अपनी धर्मबहन लीलावती और उसके पति लीलाधर के परिवार के सदस्यों को उत्तम वस्त्रालंकार प्रदान कर उनका सम्मान किया। पर्याप्त समय लीलावती और लीलाधर के घर में खुशी से बिताने के बाद उन पतिपत्नी से विदा लेकर चंद्रराजा अपने परिवार के साथ अपने डेरे पर लौट आया। सब लोग अपने अपने डेरे में विश्राम कर रहे थे। यहाँ उसी रात को एक विचित्र-सी घटना घटी। उसी दिन जबकि चंद्रराजा अपने परिवार के साथ यहाँ पोतनपुर में आ पहुँचा था और डेरा डाल कर सपरिवार विश्राम कर रहा था, इंद्र ने सौधर्म सभा में कहा, “इस जंबुद्वीप के दक्षिणार्थ भरत में आभापरी नाम की एक नगरी है। वहाँ का राजा चंद्र सदासंतोषी, अत्यंत सदाचारिप्रिय, महादयालु और परमोपकारी है। इस समय तो मृत्युलोक में इस राजा के समान अन्य कोई राजा नहीं दिखाई देता है। इस राजा की-राजा चंद्र की -सौतेली माँ ने उसे अपनी मंत्रशक्ति के बल पर मनुष्य से / मुर्गा बना दिया था। लेकिन सोलह वर्ष बीत जाने के बाद इस राजा चंद्र को अपने सदाचार और सिद्धाचल तीर्थ के प्रभाव से मुर्गे मेंसे फिर से मनुष्यत्व की प्राप्ति हो गई हैं। इस चंद्र राजा को अपने शुद्ध आचरण से चलायमान करने की शक्ति स्वर्गलोक की अप्सराओं में भी नहीं है। सदाचार के संबंध में राजा चंद्र मेरु पर्वत की तरह अचल हैं, दृढ है। उसको कोई अपने सदाचार से विचलित नहीं कर सकता।" - इंद्र के मुख से चंद्र राजा की ऐसी प्रशंसा सुनकर एक देवता की इंद्र की बातों पर विश्वास नहीं हुआ इसलिए उसने चंद्रराजा के सदाचार की परीक्षा लेने की ठानी। तुरंत इस देवता ने अद्भूत और रूपवान् विद्याधरी का ऐसा मोहक रूप धारण कर लिया कि उसे देखकर मनुष्य तो क्या, देवता भी मोहित हो जाएँ। यह देवता इस सुंदर रूप में स्वर्ग में से निकला और सीधा पोतनपुर के उद्यान में आ पहुँचा। रात का समय होने पर उसने एक स्त्री की आवाज में अत्यंत करुण स्वर से रोना प्रारंभ P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust