Book Title: Chandraraj Charitra
Author(s): Bhupendrasuri
Publisher: Saudharm Sandesh Prakashan Trust

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Page 230
________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 225 ससुर जिंदा नहीं हैं, इसलिए अपने पति को ही अपना सर्वस्व मान कर और उनकी आज्ञा का बराबर पालन करके उनका चित्त नित्य प्रसन्न रखने की कोशिश कर / कभी अपने पति से लड़ाई-झगड़ा मत कर! बेटी, तू समझदार है, चतुर भी है। फिर भी तुझे कह रखती हूँ कि चाहे जैसा प्राणधाती संकट भी आ जाए, तो भी देव-गुरू-धर्म इन तीनों की सेवा में रुकावट न आने दे। ये तीन तत्त्व ही जीव को भीषण भवसागर से तारनेवाले-पार करानेवाले-होते हैं, इसलिए इन तीनों के बारे में कभी लापरवाही मत कर / दानपुण्य के संबंध में तुझे हमें बताने की आवश्यकता ही नही जंचती है। वह तो यहाँ भी तेरा दैनिक कर्तव्य बना हुआ है। साथ में यह बात भी याद रख कि तुझसे-तेरे कारण किसी भी प्राणी को थोडी-सी पीड़ा न सहनी पड़े। परपीडा महापाप हैं। परोपकार महापुण्य हैं। इस संसार में कोई भी जीव पराया नहीं है, सबके सब हमारी आत्मा के _संबंधी ही हैं। इसलिए हर एक जीव को अपनी आत्मा के समान मान कर उसका सम्मान करती जा। अन्य प्राणियों के सुख में तुझे सुखी होना चाहिए और उनके दुःख में दु:खी होना चाहिए। - हे बेटी, देख, संपत्ति की प्राप्ति से कभी उन्मत्त मत बन और विपत्ति आने पर शोक मत कर / संपत्ति और विपत्ति में समभाव रखने की कोशिश करती जा ! तेरे हाथ से कभी ऐसा कोई काम न ही, जिससे किसी पर अन्याय हो जाए। किसी का भी उत्कर्ष होते देख कर उससे ईर्ष्या मत कर / दु:खी और दीन जीवों के प्रति अपने मन में निरंतर दया का भाव रख / कभी किसी की निंदा भूल कर भी मत कर / अपनी ओर से भूल हो जाए तो उसे तुरन्त स्वीकार कर ले।। हरदम अपने पति की इच्छा के अनुसार चलने का प्रयत्न कर।" अपनी इकलौती विवाहित कन्या को ऐसी हितशिक्षा देते-देते ही प्रेमला की माता ने उसे अपनी आँखों से आँसुओंकी निरंतर बहती जा रही धारा से भिगो दिया। प्रेमला की सखियाँ चारों और से उसे घेर कर खड़ी थी। आज बहुत वर्षों की निरंतर संगति ने बाद अब प्रेमला से अलग होना पड़ेगा, इस विचार से वे अत्यंत खिन्न थीं। प्रेमला ने अत्यंत गहरे स्नेहभाव से उन सब के मस्तकों पर थपथपा कर उन्हें शांत किया। ऐसा लग रहा था कि इस विषम विदायप्रसंग का द्दश्य देखने के लिए देवतागण भी आकाश में रूक गए हो ! प्रेमला बार-बार अपने सभी स्नेही जनों को स्नेह की दृष्टी से और सजल नयनों से देखती जा रही थी। अंत में, वह सबसे विदा लेकर रथ में बैठ गई। चंद्र राजा की सास ने दामाद के कपाल पर कुंकुमतिलक किया और उसके हाथ पर सुवर्णमुहर के साथसाथ श्रीफल रख कर उन्हें भी विदा दे दी। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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