Book Title: Chandraraj Charitra
Author(s): Bhupendrasuri
Publisher: Saudharm Sandesh Prakashan Trust

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Page 217
________________ 212 . श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र पूछने से क्या लाभ ? जो भाग्य में लिखा हुआ होता है वह भोगना ही पड़ता है। वह मैंने भोग भी लिया हैं। .. : विधाता के लिखे हुए लेख को बदलने की सामर्थ्य किसमें है ? हे प्रिय, मैंने आपके विरह में सोलह वर्षों की लम्बी अवधि बिता दी है। इतने सारे वर्षों में मुझे क्या-क्या भोगना पड़ा, इसे या तो मेरा दिल जानता है / या फिर भगवान जानते हैं। __ और क्या लिखू ? प्रिय नाथ, आपके वियोग में मुझे सुखदायी वस्तुएँ भी दुःखदायी ही लगती हैं। आपके बिना सख के सभी साधन मेरे लिए एक से रहित शुन्य की तरह बिलकुल निरर्थक हैं, बेकाम के हैं। आपके बिना मेरी हालत पानी के बीना होनेवाली मछली के समान हो गई है / हे नाथ, मैं हर क्षण आपके नाम का स्मरण करती हूँ। प्रतिदिन मैं भगवान से हार्दिक प्रार्थना करती रहती हूँ कि आपका मुझसे जल्द संगम हो ! इसके लिए मैं यथाशक्ति जप-तपव्रत और प्रभुभक्ति करती रहती हूँ। आपका पत्र पढ़ कर पता चला कि आपको फिर से मनुष्यत्व की प्राप्ति हो गई है। यह पढ़ कर मेरे मन में आनंद का समुद्र उछल रहा हैं। अब आपसे यह विनम्र प्रार्थना हैं कि आप यथाशीघ्र आभापुरी पधार कर मुझे दर्शन दे दें और मेरे लम्बे समय से विरह-संतप्त हृदय को शांति प्रदान करें / हे नाथ, मुझे मत भूलिए। हे नाथ, आप भले ही इस समय शरीर से विमलापुरी में बैठे हों, लेकिन यहाँ तो मेरे मनमंदिर में आ बैठे हो। मैं वहाँ बैठे-बैठे आपके सद्गुणों का नित्य स्मरण कर रहै हूँ। आपके बिना यहाँ मेरा एक-एक दिन एक-एक युग की तरह बीतता है। आपके वियोग में, आपके संकट में मुझे एक दिन भी खाने में मन नहीं लगा, स्वाद नहीं आया / इन सोलह वर्षों की लम्बी अवधि में मैं एकरात भी चैन से नहीं सो सकी। आपके बिना यह सभी सुविधाओं से परिपूर्ण राज महल भी बड़ा भयंकर लगता है। आपके बिना कोई वस्तु मुझे सुख नहीं प्रदान कर सकती। आपके वियोग के कारण मैं निरंतर दु:ख के दावानल में जलती जा रही हूँ। लेकिन आज अचानक आपका पत्र लेकर आपका सेवक आया / आपका पत्र पढ़कर अब मेरे मन में पूरी आशा जाग उठी है कि मुझे शीघ्र ही आपका समागम मिलेगा / भविष्यत् में आनेवाले उस सुख की खुशी में मैं अपना सारा विरहदुःख भूल गई हूँ। आज आपके समागम की कल्पना के आनंद में डूब कर मैंने अवर्णनीय आनंद पा लिया है। हे जीवनाधार ! आपकी मनुष्यत्व की प्राप्ति हुई यह जान कर मेरा आनंद मेरे हृदय में समा नहीं रहा हैं / मेरे लिए तो यही सच्चा सुख समाचार हैं। P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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