________________ 184 ___ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र इसलिए अब मुर्गे को अपना पति जान कर और आँखों में आँसू भर कर प्रेमला मुर्गे से कहन। लगी, हे प्राणनाथ ! आप आए, बहार आ गई ! मैं आपका हार्दिक स्वागत करती हूँ। अबकृपा कीजिए और मुझे छोड़ कर फिर कभी दूर मत जाइए / अब फिर कभी इस दासी को भूल मत .. जाइए। अब से मैं आपकी सेवाभक्ति में अपनी ओर से कोई कसर नहीं रखूगी। आपकेप्रत्यक्ष रूप से मिलने से आज मुझे ऐसा लग रहा है कि साक्षात् परमात्मा के दर्शन कर रही हूँ। अब से मैं कभी आपको नहीं छोडूंगी। आप भी कृपा करके मुझे छोड़कर मत चले जाइए। समय बीतता गया। चातुर्मास के चार महीने समाप्त हुए / वर्षा ऋतु बीत गई / अब प्रेमला ने सर्वसुखदाता सिद्धाचलजी की यात्रा करने क निश्चय किया। विमलापुरी सौराष्ट्र में हा स्थित थी। इसलिए विमलापुरी से सिद्धाचलजी तीर्थक्षेत्र निकट ही पढ़ता था। प्रेमला ने अपना सभी सखियों को भी अपने साथ सिद्धाचलजी की यात्रा के लिए चलने का निमंत्रण दिया। इसी समय अचानक विमलापुरी में एक ज्योतिषी आया / ज्योतिषी जब राजमहल म आया सो प्रेमला ने ज्योतिषी के पास जाकर प्रश्न किया, ज्योतिषीजी, क्या आप बता सकेगाक | मुझे मेरे पति के दर्शन फिर कब होंगे ? क्या मेरे पति से मेरा मिलन होगा ? ज्योतिषी ने विनम्रता से कहा, हे राजकुमारी जी, मैं आपके लिए ही ज्योतिषशास्त्र सीखने को कर्णाटक देश में गया था। वहाँ अनेक ज्योतिषशास्त्रों का अध्ययन करके मैं आज हा विमलापुरी लौट आया हूँ। आपके निमंत्रण के बिना ही, आपके पूछे हुए इस प्रश्न का उत्तर दन के उद्देश्य से ही में यहाँ आया हूँ। हे राजकुमारी, आपको अपने पति के दर्शन कल या आज हा हो जाएँगे। यदि मेरा भविष्यकथन सत्य सिद्ध हो गया तो आपको मुझे धन्यवाद और बड़ा इनाम देना होगा और मेरी ज्योतिषीविद्या की प्रशंसा करनी होगी। ठीक है न ? . प्रेमला ने ज्योतिषी के कथन की हामी भरी। तब ज्योतिषी ने फिर से कहा, ऽहे राजकुमारी, मैं छाती ठोंककर निश्चयपूर्वक कहता हूँ कि मेरी कही हुई भविष्यवाणी कभी झूठ सिद्ध नहीं हो सकती है। मुझ जैसे ज्योतिषी की वाणी पर आपको आशंका नहीं करनी चाहिए।रु .. ज्योतिषी की निश्चयपूर्ण बातें सुन कर प्रेमलालच्छी मन में अत्यंत हर्षित हुई / इस हर्ष = में प्रेमला ने ज्योतिषी को अच्छा-सा पुरस्कार दिया और उसे ससम्मान रवाना कर दिया। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust