________________ 196 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र गायन कर रहे थे। याचकों को मुक्तहस्त से दान दिया जा रहा था / संघ के साथ रंगबिरगी ध्वजा-पताकाएँ आकाश में ऊँचाई पर लहरा रही थीं। नट और वारांगनाएँ तरह-तरह के नृत्य दिखा रहे थे। इस प्रकार की भव्य शोभायात्रा में से होते हुए और सबके मन-नयन प्रसन्न करतेकरते चंद्र राजा ने घूमघाम से विमलापुरी नगरी में प्रवेश किया। आज विमलापुरी की जनता के आनंद वृधी में जैसे ज्वार आ गया था। लाखों की संख्या में होनेवाले लोगों के मुँह से 'राजा चंद्रजी की जय हो, ‘रानी प्रेमला की जय हो' के लग रहे नारों से सारा आकाश गूंज रहा था। विमलापुरी में प्रवेश करने के बाद विमलापुरी की जनता ने राजा चंद्र और प्रेमला का स्वागत अक्षतों, मोतियों और सोने के फूलों की वर्षा करके किया। सबकी नजरें प्रेमला के पति चंद्र राजा को देखने में मग्न थीं। चंद्र राजा के इंद्र के समान अनुपम रूपलावण्य और सौंदर्य को देख-देख कर सब लोग प्रेमला के भाग्य की प्रशंसा करते जा रहे थे। अपने साथ बहुत बड़ा संघ लेकर जब राजा मकरध्वज और राजा चंद्र राजमहल के निकट आ पहुँचे तो दोनों अपने-अपने हाथियों पर से नीचे उतरे / हर्षावेश में आकर राजा मकरध्वज ने याचकों को ऐसे मूल्यवान् वस्त्रालंकारों का दान किया कि उन्हें पहन कर जब ये याचक अपने-अपने घर गए, तो उनकी पत्नियाँ भी उन्हें पहचान न सकी। राजा मकरध्वज ने नटराज शिवकुमार को राजदरबार में सम्मान से बुलाया / राजा ने उसका यथोचित सम्मान किया। इसी समय राजा चंद्र ने शिवकुमार को अपने पास बुलाया और अत्यंत आदर और कृतज्ञता के भाव से उसे एक लाख स्वर्णमुहरें उपहार के रूप में अर्पित की। राजा चंद्र ने शिवकुमार को एक छोटा राजा ही बना दिया। इसके बाद राजा चंद्र ने उन सात सामंत राजाओं को, जिन्होंने पिछले कई वर्षों से उसके मुर्गे के रूप में होते समय जो जान से उसके प्राणों की रक्षा की थी, अपने पास क्रमश: बुलाया और उन सबकी कीमती उपहार सम्मानपूर्वक देकर उनके साथ निरंतर के लिए मित्रता का समझौता किया। राजा चंद्र ने इन सामंत राजाओं को कहा, “आज से आप मेरे मातहत राजाओं के रूप में नहीं, बल्कि स्वतंत्र राजाओं के रूप में खुशी से राज्य कीजिए।" संकट के समय में की हुई सहायता के लिए राजा ने उनको कोटिशः धन्यवाद देकर उनकी जी खोल कर प्रशंसा की और उनका बड़ा सम्मान किया। P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust