________________ 199 , श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र राजा मकरध्वज ने इस पर अपनी पुत्री प्रेमला की आश्वस्त करते हुए कहा, 'बेटी, इसके बारे में अब बिलकुल चिंता मत कर / बेटी, विमलापुरी और आभापुरी के बीच जो प्रदेश मेरे अधीन है, वह सारा तेरे पति को देकर मैंने उन्हें स्वतंत्र राजा बनाने का निर्णय किया है। दूसरी बात यहा है कि तूने हमारे कुल में जन्म लेकर हमारे कुल का नाम उज्ज्वल कर दिया . हैं। बेटी, तेरे महाभाग्य के कारण ही मुझे आभानरेश जैसे सर्वोत्तम दामाद की प्राप्ति हुई। ऐसा दामाद जन्म-जन्म के प्रबल पुण्य से ही प्राप्त होता है। बेटी, मुझे पूरा विश्वास हे कि तेरे और तेरे पति के जीवन का गुणगान तो कविगण करेंगे। शास्त्रों में तुम्हारे नाम सुवर्णाक्षरों से लिखे जाएँगे। मैं तो परमात्मा से एक ही प्रार्थना करता हूँ कि वह तुम दोनों को हरदम सुख में रखे / तुम्हारा सुख और वैभव दिन दूना रात: चौगुना बढ़ता रहे।" अपनी बेटी प्रेमला को ऐसा आशीर्वाद देकर राजा मकरध्वज अपनी बेटी से विदा लेकर चले गए। उन्होंने अपने दामाद और कन्या के निवास के लिए सभी सुविधाओं से परिपूर्ण स्वतंत्र राजमहल का प्रबंध कराया। राजा चंद्र अब अपनी रानी प्रेमला के साथ रहते थे, वे दोगुंदक देवता की तरह सभी सुखों का उपभोग कर रहे थे। ऐसी ही एक बार एकान्त में मकरध्वज राजा ने अपने दामाद राजा चंद्र से पूछा, “हे चंद्रनरेश, मैंने अभी तक आप से कभी नहीं पूछा, लेकिन अब पूछ ही लेता हूँ, क्योंकि मेरे मन की जिज्ञासा मुझेचुप नहीं बैठने देती / हे चंद्रनरेश, बताइए, आप सोलह वर्षपहले यहाँ अचानक मेरी बेटी के विवाह के समय पर कैसे आए ? मेरी बेटी के साथ आपका विवाह कैसे हुआ ? मेरी बेटी से विवाह करने के बाद आप अचानक तुरन्त यहाँ से उसे छोड़ कर क्यों चले गए ? आपको यह मुर्गे का रुप किसने और क्यों दिया ? हे नरेश, यह जानने की मेरे मन में बहुत उत्कंठा है। यदि ये सारी बातें बताने में आपके लिए कोई बाधा न हो, तो कृपा कर मुझे अवश्य बताइए।" अपने ससुर राजा मकरध्वज से यह अपेक्षितसा प्रश्न सुनकर उसका उत्तरं देते हुए राजा चंद्र ने कहा, “हे राजन् ! दुष्ट मंत्र-तंत्र में प्रवीण मेरी सौतेली माँ वीरमती है और गुणावली P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust