________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 175 कालचक्र घूमता जा रहा था। ऐसे ही एक दिन मकरध्वज राजा ने अपनी पुत्री प्रेमला से कहा, "प्रेमला बेटी, पहले तो मैं तेरी बात को झूठ मान कर ठुकरा देता था, लेकिन अब मुझे तेरी बात अक्षरश: सत्य मालूम होने लगी है / यह शास्त्रवचन सनातन सत्य है कि - "जो कर्म करता है, वह कोई नहीं कर सकता है।" प्राणीमात्र को सुख-दुख देनेवाला उसका कर्म ही होता है। इस बात में कोई आशंका नहीं होनी चाहिए। हे बेटी, दूसरी बात यह है कि तेरा पति चंद्रराजा तो यहाँ से बहुत दूर आभापुरी में है। इसलिए इस समय तेरा उससे मिलना संभव नहीं दिखाई देता है। लेकिन अगर तू कहे तो तेरे पति के घर का मुर्गा मैं तुझे नटराज से माँग कर लाकर दे दूँगा। यह मुर्गा तू अपने पास रख कर उसका लालन-पालन करेगी, तो तेरा समय आनंद से बीतेगा। बेटी, इसको छोड़ कर इस समय हम तेरे लिए और कर ही क्या सकते हैं ? कर्मसत्ता के सामने किसी का बस नहीं चलता हैं। किए हुए कर्म को तो हर किसीको भोगना ही पड़ता है। कर्म की गति बड़ी विचित्र है। कर्म की गति एक क्षण में राजा को रंक और रंक को राजा बना डालती है। प्रेमलालच्छी को उसके पिता द्वारा कही गई ये बातें बहुत अच्छी लगीं। जो पसंद था / वही वैद्य न कहा जैसी बात होगई / इसलिए प्रेमला ने अपने पिता राजा मकरध्वज से कहा, पूज्य पिताजी, मैं तो स्वयं अपनी ही ओर से नटराज से वह मुर्गा माँग कर मुझे देने की बात आप से कहनेवाली थी। यह तो बहुत अच्छा हुआ कि आपके मन में भी वही विचार था। इसलिए पिताजी, जितनी जल्द हो सके, वह मुर्गा नटराज से लाकर मुझे दे दीजिए। यह पक्षी तो मेरे पति के घर का होने से मुझे बहुत प्रिय लगता है। इस मुर्गे को अपने प्रिय पति के घर का मेहमान / मानकर मैं बराबर उसकी सेवा और रक्षा करूँगी। प्रेमला के मन की प्रबल इच्छा जान कर राजा मकरध्वज ने तुरंत अपने एक सेवक को नटराज को बुला लाने के लिए भेज दिया। राजा का संदेश मिलते ही कुछ ही समय में नटराज शिवकुमार राजा के सामने आकर उपस्थित हुआ। उसने राजा को विनम्रता से प्रणाम किया। राजा ने नटराज का प्रणाम स्वीकार कर उससे कहा, हे शिवकुमार, देखो, तुम्हारे पास जो मुर्गा है वह मेरी बेटी प्रेमला के पति के घर का है। यह बात हमने अत्यंत गुप्त रखी है कि आभापुरी के चंद्र राजा मेरे दामाद हैं / आज से सोलह वर्ष पहले मेरी पुत्री प्रेमला का विवाह इसी P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust