________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 153 राजा चंद्र, मैं आपका दास हूँ। आप मेरे स्वामी और अतिथि हैं / यहाँ मेरी नगरी में आपका आगमन होने से मैं धन्य-धन्य हो गया हूँ। आप मेरी ओर से यह तुच्छ उपहार सहर्ष स्वीकार कर मुझे उपकृत कीजिए।" राजा अरिमर्दन के अत्यंत अनुरोध से और मुर्गे के रुप में होनेवाले राजा चंद्र की अनुमति से नटराज शिवकुमार ने इस उपहार में से कुछेक वस्तुएँ स्वीकार कर ली। इससे राजा अरिमर्दन अत्यंत संतुष्ट हुआ। कुछ समय तक वहाँ रूक कर जब नटमंडली आगे की ओर प्रस्थान करने के लिए / तैयार हुई, तब राजा अरिमर्दन ने अत्यंत सम्मान केसाथ अपने राज्य की सीमा तक इस मंडली को पहुँचाया और राज्य की सीमा पर उन्हें विदा देकर वह राज्य की ओर लौट आया। धरती पर के विभिन्न प्रदेशों में से होकर धूमती हुई यह नटमंडली एक बार सिंहलद्वीप / के निकट पहुँची। वहाँ समुद्र के किनारे पर 'सिंहला' नामक एक बड़ी नगरी स्थित थी। नगरी के बाहर इस नटमंडली ने अपना डेरा डाला। इस अद्भूत नटमंडली को देखने के लिए सिंहला नगरी में से लोगों के बड़े-बड़े समूहं आने लगे। इस नटमडली का खेल देखने के लिए सबके मन लालायित हो गए। सिंहल राजा को जब इस बात का समाचार मिला, तब उसने तुरंत नटराज शिवकुमार को उसकी नटमंडली के साथ अपने दरबार में बुला कर अपना खेल दिखाने के लिए कहा . राजा का आदेश मिलते ही नटराजा शिवकुमार अपनी नटमंडली और सुवर्ण पिंजड़े में मुर्गे को लेकर राजदरबार में आ पहुँचा / राजा से अनुमति पाकर नटराज की नटमडली ने अपना अद्भुत नाटक राजदरबार में प्रस्तुत किया। यह नाटक देख कर राजा और अन्य सब लोग बहुत खुश हुए। राजा ने भी खुशी से पाँच सौ जहाजों से जो शुल्क वसूल किया गया था वह सबका सब नटराज को इनाम के रुप में प्रदान कर दिया। राजा की उदारता से सब लोग बहुत प्रभावित हुए / नटमंडली खुशी से अपने डेरे की ओर लौट आई और उन लोगों ने पोतनपुर की ओर प्रस्थान करने के लिए तैयारी प्रारंभ की। इधर सिंहल राजा की रानी को यह अद्भूत सुंदर मुर्गा बहुत भा गया। इसलिए रानी ने अपने पतिराज से कहा, "महाराज, कुछ भी कीजिए, लेकिन अपने सौंदर्य से सारे विश्व को वश में करनेवाला वह अद्भुत मुर्गा मुझे ला दीजिए / इस मुर्गे के बिना मैं जीवित नहीं रह सकती हूँ।" मुर्गे के बिना रानी की हालत पानी से बाहर निकाली गई मछली की तरह हो गई थी। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust