________________ 156 - श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र सुबुद्धि और मंजूषा की लाड़ली कन्या लीलावती का विवाह उसी पोतनपुर नगरी के लीलाधर नाम के एक वणिकपुत्र से हुआ था / कामदेवरति की जोड़ी की तरह लगनेवाला लीलाधर-लीलावती की जोड़ी को देख कर नगरजन कहते, “सचमुच परमात्मा ने इस जाड़ा का मिलन 'मणिकांचन योग' की तरह कर दिया है। दोनों पतिपत्नी दोगुंदक देवता के समान विषयसुखप्राप्ति में अपना समय व्यतीत कर रहे थे। ऐसे ही एक दिन की बात है कि एक संन्यासी लीलाधर सेठ के यहाँ कोई वस्तु की याचना करने के लिए आ पहुँचा। सेठ लीलाधर ने उस संन्यासी का तिरस्कार करके उसको अपने यहाँ से निकाल दिया। सेठ के उदंड बताव से कोपायमान हुए संन्यासी ने कहा, "हे सेठ ! तुम इतना अधिक धमंड क्यों करते हो ? तुम मुझे कोई सामान्य संन्यासी मत समझो। बाप की कमाई पर इतना अभिमान करना तुम्हें शोभा नहीं देता है। खुद कमाई करक तुम धन प्राप्त करो और फिर ऐसा घमंड करो तो मैं तुम्हें मर्द का बच्चा मान लूंगा। अच्छा ह कि तुम्हारे माता-पिता अभी जिंदा है। इसलिए तुम निश्चिन्त होकर कठोर वचन कह कर मुझ इस प्रकार दुत्कार रहे हो। लेकिन सेठ, यहबात गाँठ बाँध कर रखना कि ये सुख के दिन बहुत लम्बे समय तक नहीं रहेंगे। क्या तुम्हें यह मालूम नहीं हैं कि सुख 'चार दिन की चाँदनी' का | तरह होता है ? इसलिए सुख के क्षणों में इतने उन्मत्त मत हो जाओ। धन, यौवन और सोदय पर कभी गर्व मत करो. हो सकता है कि कल तुम्हारी ऐसी दशा हो जाएगी, कि तुम्हें देख कर लोगा हँसेंगे। सेठ, इस संसार में बहुत सोच समझ कर बर्ताव करना आवश्यक है, समझे ?' संन्यासी की बातें सुन कर मन-ही-मन लज्जित हुए लीलाधर ने कहा, "हे भिक्षुराज, | आज से आप ही मेरे गुरु हैं। आपने मुझे अच्छी शिक्षा देकर सावधान कर दिया हैं / अब म विदेश जाऊंगा और धन कमा कर ही वापस आऊँगा। यह मेरा अंतिम निर्णय है।" . इस प्रकार मन में विदेश में जाने का दृढ़ संकल्प करके लीलाधर अपने घर में चला गया और वहाँ एक टूटी हुई खाट पर सो गया। कुछ देर बाद लीलाघर के पिता धनद सेठ घर में आ पहुंचे। उन्होंने टूटी हुई खाट पर अपने पुत्र को सोया हुआ देख कर उससे पूछा, “हे पुत्र, आज ऐसे क्यों सो गया है ? क्या किसीने तेरा अपमान किया है, जिससे तू रुठ कर इस तरह टूटी हुई - खाट पर सो गया है ? क्या बात है ?" P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust