________________ 158 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र लीलावती जिस विलासशृंगार को आशा से अपने प्रिय पति के पास आई थी वह आशा निराशा में बदल गई। लीलाधर तो अपने विचारों में ही खोया हुआ था। इसलिए उसका पता भी नहीं चला कि मेरी प्रिया यहाँ मेरे पास आई हुई है। . हम लोग भी लीलाधर की तरह, मंदिर में जाने के बाद यदि भगवान के गुणों में और मोक्षसुख के विचारों में डूब जाएँ, तो हमारे लिए मोक्षनगरी दूर नहीं होगी ! लेकिन वह दिन कब उदित होगा ? जिसको भगवान के गुणों और मोक्षसुख के विचारों में खो जाना भाता है - पसद आता है, उसके लिए संसार खो जाता है, नष्ट हो जाता है, छूट जाता है। पति की यह विचारमरत अवस्था देख कर मन में अत्यंत क्षुब्ध हुई लीलावती ने अपन पति लीलाधर से कहा, "हे स्वामी, मैंने आज यह सुना है कि आपके मन में विदेश जाने का प्रबल इच्छा जाग उठी है / लेकिन सारे परिवार को नाराज करके विदेश जाना आपके लिए : अच्छा नहीं है। दूसरी बात, है प्रिय, मेरी ओर से ऐसा कौन-सा अपराध हुआ जो आपको मेरा : ओर देखना भी अच्छा नहीं लग रहा है ? लेकिन हे नाथ, याद रखिए, मैं आपको कभी विदश नहीं जाने दूंगी। क्योंकि यह तो विदेश को बात है। आप मुझसे फिर कब मिलेंगे, यह कहा नहीं | जा सकता। आपके लौट आने के समय तक मैं आपका वियोग सहन नहीं कर सकती है। | इसलिए हे नाथ, आप विदेश मत जाइए।" आधी रात के समय तक अपने पति को विदेश न जाने के लिए लीलावती ने हर तरह से समझाया, लेकिन लीलाधर के विदेश जाने के विचार में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। अंत में लीलावधर के विदेश जाने की ज़िद की बात उसके ससुर मंत्री तक पहुँची। बुद्धिमान मंत्री सुबुद्धि ने सोचा कि इस समय दामाद को समझाने से कोई लाभ नहीं होगा। इसलिए मंत्री ने अपनी बुद्धिमानी से एक नया उपाय खोज निकाला और वे अपने समधा धनद सेठ के पास चले आए / घनद सेठ ने अपने समधी मंत्री सुबुद्धि का स्वागत किया . क्षेमकुशल को बातें हुई और बातों का सिलसिला चल पड़ा। मंत्री ने घनद सेठ से कहा, “सेठजी, मेरे दामाद और आपके सुपुत्र लीलाधर विदेश जाना ही चाहते है, तो उन्हें जाने दा, उन्हें जाने से मत रोको / लेकिन एक बात है कि विदेशयात्रा शुभ मुहूर्त देख कर करना चाहिए। इतना ध्यान अवश्य रखिए।" P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust