________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 163 मंत्रीजी, यदि आप शक्ति के बल पर हमसे हमारा प्राणप्रिय मुर्गा छीन लेने की अधम चेष्टा करेंगे तो आपके राजा का यह राज्य भी सुरक्षित नहीं रह सकेगा। यदि हमारी शक्ति के बारे में आपके मन में कोई आशंका हो, तो सिंहल राजा से पूछ लीजिए। हमने सिंहल राजा को कैसे तहसनहस कर डाला था, उसकी चाहे तो खबर मँगा लीजिए। कौन है ऐसा माई का लाल जो हमारे मुर्गे के सामने आँख उठा कर उसे बुरी नजर से देखने की चेष्ठा भी करें ? मंत्रीजी, हम आपको एक सलाह देते है कि आप हमारे इस मुर्गे को पकड़ने की बात ही मन से निकाल डालिए। यह कोई सामान्य मुर्गा नहीं है। हम उसे सोने के पिंजड़े में रखते हैं और सिर पर वह पिंजड़ा लेकर गाँव-गाँव घूमते हैं। अपना कोई भी काम प्रारंभ करने से पहले हम उसकी जयजयकार करते हैं और उसकी आज्ञा लेकर ही अपना नाटक आदि प्रस्तुत करते हैं / यह हमारे लिए कोई सामान्य मुर्गा नहीं, बल्कि यह हमारे माथे का मुकुट है ! हमारा स्वामी है !! राजा है ! ! इसलिए इस मुर्गे को पाने की आशा आप छोड़ दीजिए।" - नटराज शिवकुमार की बात सुन कर आश्चर्यान्वित हुए मंत्री सुबुद्धि ने अपनी कन्या लीलावती से कहा, "बेटी. मैंने नटराज को हर तरह से समझा कर देखा, लेकिन वह किसी भी हालत में वह मुर्गा देने को तैयार नहीं है। इसलिए तू अब अपना हठ छोड़ दे, बेटी !' - - लीलावती वैसे तो समझदार युवती थी। पिता की कही हुई बातें उसके गले तो उतरी लेकिन उसने मुर्गा पाने के समय तक अन्नजल त्याग करने की प्रतिज्ञा की थी। इसलिए अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए एक बार वह मुर्गा उसके पास लाया जाना आवश्यक था। मंत्री ने अपनी बेटी की कठिनाई जान ली। लीलावती ने भी पिता को यह बताया। बार अपने पास बुलाया और उससे विनती की, “आप एक बार एक क्षण के लिए आपके पास होनेवाला मुर्गा मुझे दे दीजिए। मुर्गे के क्षेमकुशल की सारी जिम्मेदारी मेरे सिर रहेगी। कुछ ही देर में मेरी पुत्री की प्रतिज्ञा पूरी करके मैं मुर्गे को आपको वापस ला दूँगा। फिर भी यदि आपको मुझ पर विश्वास न आता हो, तो तब तक आप मेरा यह पुत्र आपके पास रखें। जब तक मैं मुर्गे को वापस ला न दूं, तब तक मेरा यह पुत्र आपके पास रहेगा।" .P.P.AC. GunratnasuriM.S. Jun Gun Aaradhak Trust