________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 167 समाप्त होगा और शुभ कर्मो का उदय होगा, तब आपकी अपनी आभानगरी का राज्य और रानी गुणावली अवश्य वापस मिलेंगे। जैसे अच्छे दिन लम्बे समय तक नहीं टिकते हैं, वैसे ही बुरे दिन भी बहुत समय तक नहीं टिक सकते हैं / इसलिए इस समय आप परमात्मा का नामस्मरण करने में ही अपना समय काटते रहिए। राजन्, आप अपने मन में किसी भी बात की चिता मत कीजिए। इस दुखमय संसार में किसके भाग्य में एकमात्र सुख ही आता है ? भाग्य का चक्र तो निरंतर घूमता ही रहता है, वह कभी रुकता नहीं है। हे राजन्, आज से मैंने आपको अपना भाई मान लिया / आप भी मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि विधाता ने हम दोनों के बीच भाई-बहन के इस संबंध की स्थापना करने के लिए ही .. आपको यहाँ भेज दिया है। लेकिन हम दोनों के बीच यह भाई-बहन का संबंध क्षणिक है। इसलिए जब आपको फिर से मनुष्यत्व की प्राप्ति हो जाएगी, तब आप यहाँ पधारिए और अपनी इस बदनसीब बहन को अवश्य दर्शन दीजिए / अनजाने में मैंने आपसे जो भली-बुरी बात कही, उसके लिए मुझे क्षमा कर दीजिए / हे राजन्, आप आपके साथ हुई भेंट से मेरा जीवन सार्थक हो गया, धन्य हो गया। फिर अवसर मिलने पर अपनी इसी निर्गुणी बहन को अवश्य याद कीजिए। आपकी यह गरीब बहन इच्छा करती है कि आपका पुण्यपुंज अवश्य उदित हो और आपके मन की आशा यथाशीघ्र पूरी हो जाए।" . मुर्गे से इतना कह कर लीलावती ने उसका मुँह मीठा किया और उसे सम्मान से नटराज के पास वापस भेज दिया। नटराज ने भी मुर्गा पाते ही सुबुद्धि मंत्री के अपने पास रखे हुए पुत्र को मंत्री के घर वापस भेज दिया। नटमंडली को अब इस नगरी में कोई काम नहीं बचा था। इसलिए उन्होंने अब यहाँ से आगे की ओर प्रयाण करने की तैयारी की। वहाँ से निकल कर घूमते-घूमते नटमंडली विमलापुरी के उद्यान में आ पहुँची। उद्यान में जिस स्थान पर वीरमती ने आम का पेड़ स्थापित किया (रखा) था, उसी जगह पर नटराज को मंडली ने अपना डेरा डाला। मुर्गे ने (चंद्रराजा ने) यह स्थान देखते ही पहचान लिया। चंद्र राजा को स्मरण हो आया के विमाता वीरमती और रानी गुणावली के साथ मैं आम के पेड़ के कोटर में प्रवेश कर छिपकर) सोलह वर्ष पहले आभापुरी से इस विमलापुरी में आया था। उसी रात मेरा विमलापुरी की राजकुमारी प्रेमलालच्छी से विवाह हुआ था। प्रेमला के साथ मैंने अपूर्व वार्ताविनोद किया था P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust