________________ श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र 151 सात सामंत राजाओं ने अपने स्वामी चंद्र राजा से कहा, “महाराज, हम आपके सद्गुणों के प्रति होनेवाले अनुराग के कारण ही आपकी सेवा में आ पहुँचे हैं। इसलिए महाराज, अब कृपा कर आप हमें आपके साथ रहने की आज्ञा दीजिए।" सातों सेवक सामंत राजाओं की सारी बातें ध्यानपूर्वक सुन कर मुर्गे ने (राजा चंद्र ने) अपना मस्तक हिला कर उन सात राजाओं को अपने साथ रहने की आज्ञा दे दी। इन सात राजाओं और उनकी सेना के नटराज की मंडली के साथ मिलकर रहने से अब नटों का यह संघ बहूत बड़ा हो गया। . अब जब यह बहुत बड़ा संघ तरह तरह के वाद्य बजाता हुआ एक गाँव से निकलकर दूसरे गाँव में जा पहुँचता था, तो उनको देखने के लिए लोगों की भीड़ उमड़ आती थी। इससे मार्ग सँकरा पड़ जाता था। नटों का यह संघ रास्ते पर से होकर इस तरह चलता था कि शिवमाला के सिर पर होनेवाला राजा चंद्र का (मुर्गे का) पिंजड़ा बराबर बीच में रहता। इसके फल स्वरूप सबको मुर्गे के रूप में होनेवाले चंद्र राजा के दर्शन भी आसानी से होते थे और मुर्गे की रक्षा भी अनायास हो जाती थी, उसकी रक्षा के लिए विशेष प्रबंध की आवश्यकता नहीं रहती थी। - मुर्गा हरदम शिवमाला के सिर पर होनेवाले सुवर्ण के पिंजड़े में पड़ा रहता था। उसके पीछे एक सेनापति दिव्य छत्र से उसके पिंजड़े पर छाया करता था। दोनों ओर दो अन्य सेनानायक पिंजड़े पर चामर ढलते हुए चलते रहते थे। इसके पीछे सभी लोग चंद्र राजा की जयजयकार के नारे लगाते हुए चलते रहते थे। गाँवगाँव के देखनेवालों को यह द्रश्य देखकर बड़ा आश्चर्य होता था / सब लोग इस मुर्गराज के ऐश्वर्य की प्रशंसा करते थे। जहाँ-जहाँ ठहर कर और डेरा डाल कर यह नट मंडली अपनी नाटयकला दिखाते हुए खेल करती थी, वहाँ अब इस नटमंडली को पहले की तुलना में चारगुना लाभ होने लगा। पुण्यवान् मनुष्य के पवित्र चरणों के परिणाम स्वरूप चारगुना तो क्या दसगुना लाभ होने लगे, तो वह भी कम ही है। पहले से अनेक गुना अधिक लाभ मिलने से बहुत खुश होकर यह नटमंडली गाँवगाँव में चारों दिशाओं में घूम-घूम कर अपनी अद्भूत नाटयकला दिखाते हुए लोगों का मनोरंजन करती थी। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust