________________ 139 चन्द्रराजर्षि चरित्र माशवमाला को उद्देश्य कर कहा, "हे शिवमाला, तू सभी प्रकार की कलाओं में अत्यंत पुण है / इसके साथ ही तू पंछियों की भाषा भी जानती है / इसलिए मैं अपना रहस्य तुझे नाता हूँ। तू उसे सावधानी से सुन ले। . तूअपनी अद्भुत कला वीरमती के सामने प्रकट कर और अपना खेल दिखाने के बाद परसनाचे उतर कर वीरमती की जयजयकार करते हए इनाम माँगने के लिए उसके पास ना जा। भूल कर भी मेरे नाम की जयजयकार मत कर / अगर तू ऐसा करेगी तो वारमता मुहमांगा इनाम देगी। जब वह पूछेगी कि तुझे इनाम में मुझे माँग ले / यहाँ मुर्गे के रूप में ना जीवन बिताने में मुझे अपने प्राणों का भय नित्य सताता है। मेरे प्राण यहाँ सुरक्षित नहीं यदि तू मेरा इतना-सा काम करेगी, तो मैं तेरे उपकार आजीवन नहीं भूलूँगा। क्या तू मुझ यह उपकार करेगी ?" मुर्गे की कही हुई ये सारी बातें सन कर शिवमाला ने उससे पंछी की भाषा में कहा, कहन के अनुसार मैं वीरमती के सामने अपनी कला प्रकट कर इनाम में सिर्फ आपको माग लूंगी। अंत तक इनाम में आपको ही प्राप्त करने का आग्रह नहीं छोडूंगी। महाराज, पतो मेरे मस्तक पर के मकट हैं, विश्व के शंगार हैं. प्रजा के पालनकर्ता हैं, आप हमारे राजा / आप चिंता मत कीजिए। महाराज, मैं तो आपकी पुत्री के समन हूँ। अपने प्राण देकर भी मैं आपके प्राणों की रक्षा करूगा . आप जब मेरे यहाँ पधारेंगे तो मैं अपने प्राणों से भी बढ़ कर प्रेम के साथ नरात आपकी सेवा करूंगी। किसी भी तरह से आपको कोई कष्ट नहीं पडने दूंगी। महाराज, प हमारे सर्वस्व हैं। आप हमारे पास आएंगे तो मैं यहसमझ लँगी कि कल्पवृक्ष ही मेरे आँगन आ गया है / आपके होने से हमरे लिए धन-संपत्ति की कोई कमी नहीं होगी। सबकुछ आपकी छा के अनुसार होगा, महाराज ! अब आप सबकछ मुझ पर छोड़ दीजिए और निश्चिन्त हो इए। मैं सब कुछ सँभाल लूंगी।" राजा चंद्र को इस प्रकार आश्वस्त करने के बाद शिवमाला ने अपने पिता शिवकुमार चद्र राजा का सारा रहस्य बता दिया। निर्लोभी शिवकुमार ने भी शिवमाला की बात सहर्ष कार कर ली। जो विपत्ति के समय में सहायता करता है, वही इस धरती पर सच्चा साधु पकहलाता है। 'परोपकारार्थमिदं शरीरम्' (परोपकार के लिए ही यह शरीर है) यही साधु प के जीवन का सूत्र होता है, उसके जीवन का मूल मंत्र होता है। P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust